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प्रस्तावना
उदाहरण
यह सादृश्यमूलक अलंकार है । वर्णन-प्रसंगों में समानता दिखलाने के लिए, उक्त अलंकार में ज्यों, जैसे, इव आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। साम्य प्रदर्शन के लिए शब्दगत साम्य की ओर कवि ने अधिक ध्यान दिया हैं । विषयों के अनुकूल वर्णन को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए प्रस्तुत रचना में कवि ने सफल और सुन्दर अप्रस्तुतों की योजना की है। यथा
"मोहिं सुणी जब बात यह तब मनि मच्छरु बाधु । डालि चडिउ जणु वांदरउ चूतड़ि बोछू खाधु (30)
अर्थात् जब पोन ने यह बात भी तो मर में ईर्ष्या-द्वेष बढ़ गया । जैसे कि आम की डाली पर चढ़ा हुआ बंदर आम तोड़ कर खाता है और उसे आन-वृक्ष का स्वामी नहीं सुहाता । उसी प्रकार वह मोह भी विवेक की प्रशंसा नहीं सुन सकता।
इसी प्रकार क्रोधाविष्ट मदन का चित्रण चार उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है
रोम-रोम उद्भुसिय भृकुटि चाडिय जिल्लाडिय । गुरणायउ जिम सिंघु घालि बल लिय अंगाडिय । विसहरु जिय फुकरिउ लहरि ले कोपह चडिया न हु सहिय तमक तिसु तरुणि की मच्छु तुच्छ जलि जिम खलिउ । (68)
जिस प्रकार वर्षा ऋतु के मेघ वर्षा करके सज्जनों को प्रसन्न कर देते हैं और दुर्जनों के मस्तिष्क पर ताल ( वज्र ) जैसे पड़ते हैं, उसी प्रकार विवेक ने सज्जनों को प्रसन्न किया और दुर्जनों को दुखी बनाया । यथा
"रंजिय सहि सज्जण जिम पावस घण दुज्जण मत्थई तालो ( 123 )
रणांगण में योद्धा इस प्रकार यहाँ से वहां युद्ध करते, चक्कर लगाते दिखलाई पड़ रहे थे. जिस प्रकार कि घिरनी नानती है । उदाहरण देखिए-.
"रण अंगणु देखिवि शूरवीर ।
पेरणी जेम नच्चहिं गहीर ।। ( 102 ) समुच्चय अलंकार
युद्ध में मोह और मदन का क्रोध से जलना, बलना, रिसना, नेत्रों को रक्ताभ करना, दाँत पीसना, आदि के चित्रण में समुच्चय अलंकार का सुन्दर निरूपण हुआ है।
"चडिउ कोपि कंदप्पु अप्पलि अण्णु न मण्णइ । कुंदइ कुरलइ नसइ हसइ सुभटई अवगणइ ।।" ( 136 )