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ऋ=अ भरडाक3=भ्रष्टकृति ( 14 )
ऋ इतिणो = तृण (45) अमिउ = अमृत (4) मिरदंग-मृदंग ( 97 )
ऋ = उ उसभ= ऋषभ, वृषभ ( 139 )
ऋ - रि रिसहो - ऋषभ ( 1 )
ॠ का ॠ भी पाया जाता है
मदनजुद्ध काव्य
तृण = तृण ( 26 )
5. पद के अन्त में स्थित उं, हुं, हिं और हं का ह्रस्व उच्चारण होता है। जैसे— सिउं ( 21 ), कहं ( 23 ), तहिं ( 24 ) कहुं ( 18 ) |
6. अपभ्रंश में एक स्वर के स्थान पर प्रायः दूसरा स्वर हो जाता है ।
यथा
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अ=इ
अ=उ
आ-अ
आइ
आ-उ
आ=ए
इ = ई
ई-इ
अंग-अंग ( 50 )
मात्र मत्तु ( 68 ), अनंग = अनंग (56) सीता-सीय (47)
राजा = राई ( 93 )
राजा = राउ ( 7 )
ला=लेइ ( 7 ) निनाद = निनंह ( 77 )
दिया दीयउ ( 64 )
वेणीवेणि ( 38 ), मोहनी = मोहनि ( 46 )
7. दन्त व्यंजनों के स्थान पर मूर्धन्य का प्रयोग
पत्तन = पट्टणि ( 14 ), सर्वार्थ सट्ट ( 1 ) कोतवाल कोटवाल ( 14 ) 18. वर्णागम में स्वर या व्यंजन का आदि, मध्य और अन्त स्थान में आगम । जैसेक्रूर = करुरि (108), तिमिर= तिमिरु ( 106 ) भ्रमण =भमियइ (105), विवेक विब्वेक ( 1 28 } |
9. वर्णविपर्यय भी होता है । यथा
हर्ष=रहसु ( 94 ) स्पर्श = परसु ( 42 ), हरसिङ = रहसिउ ( 58 )
10. वर्णलोप भी पाया जाता हैं ।
अनन्त नन्त (103) स्खलित-खलिय (79) |
विश्वास = विसास (104), स्थिरथिरु ( 11 )
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स्थापित = थपिउ ( 11 )
प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा व्याकरणिक प्रवृत्तियाँ
सर्वनाम - सर्वनामों में मई (71/2 ) मुझु (65/ 2 ) मज्झ (60/2 ) मुझ