SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मदनजुद्ध काव्य हैं, उनका इस लोक में मनुष्य-जन्म कृतार्थ होता है । व्याख्या-कवि ने श्रावक धर्म की चर्चा करते हए श्रावकों की प्रशंसा की है । धर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने धर्म के दो भेद किये है। पहला मुनिधर्म और दूसरा श्रावकधर्म । जो जीव श्रावक धर्मरूप जिनधर्म को पालते हैं वे अपने मनुष्य जन्म को सफल कर लेते हैं। जिन धर्म एक देश से साक्षात् है । बिना भाव तथा शरीर से पालन करना द्रव्यलिंग कहलाता हैं और भाव तथा शरीर से पालन करना भावलिंग कहलाता है । भावलिंग से मनुष्य जन्म की यथार्थ महिमा होती है । भाव का अर्थ श्रद्धाज्ञान है । कृतार्थ का अर्थ है, जिसने मोक्ष पुरुषार्थ को साधन कर लिया हैं । श्रावकधर्म के एकदेश होने से यदि कोई निरर्थक कहे तो उचित नहीं है । एकदेश से ही सर्वदेश होता है । एकदेश में भी वस्तुस्वभावरूप धर्म है । इसमें भी आत्मा का उद्धार होता है । इसमें विषय कषाय रूप अहिम का त्याग है और ज्ञान वैराग्य रूप हित में प्रवृत्ति है । इसी श्रावक धर्म से मनिधर्म की रक्षा होती है। अत: यह श्रावक वृत्ति भी उपादेय है । ऐसा श्रावक व्रती भी निर्वाण का पात्र होता हैं । इसलिए भगवान ने श्रावक धर्म का प्रतिपादन किया । वस्तु छन्द : जं पि सक्का करहु तउ तिसउ । बलु मंडिवि देह सिउं अहव किं पि जइ नर न सक्का ता सहु ध्यानु परि निजु हियइ धरत खिणु इकु न थक्का अंति करहु सस्लेहणा सब्वे जीव खिमा पालहु सावय सुख लहहु आण जिणेसर राइ ।।१५२।। अर्थ-जिस प्रकार की शक्ति है, उसी के अनुसार उस व्रत को करो । शरीर से बल (शक्ति) प्राप्त करो अथवा है मनुष्य यदि तुम कुछ भी नहीं कर सकते हो तो ध्यान रखकर श्रद्धान करो । अपने हृदय में ध्यान को धारण करने से एक क्षण भी मत रुको । मरण के अन्त समय में सल्लेखना (समाधि) धारण करके सभी जीवों से क्षमा कराओ । जिनेश्वर राजा की आज्ञा है कि इस प्रकार श्रावकव्रत का पालन करके सुख को प्राप्त करो । व्याख्या--मनुष्यों में भी अनेक प्रकार के लोग हैं । बालक वृद्ध, धनी-निर्धन, सबल-निर्बल । इसलिए सबके ऊपर एक सा नियम लागू नहीं हो सकता । अतः प्रभु ने अपने उपदेश में कहा कि अपनी शक्ति
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy