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मदनजुद्ध काव्य
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के अनुसार कर्म करो । शक्ति से अधिक मत करो । शक्ति अनुसार करने से व्रत का निर्दोष पालन होता हैं। संक्लेश परिणाम नष्ट होते हैं, जिससे परिणामों में विशुद्धि आती है और आनन्द की प्राप्ति होती है । यदि शक्ति नहीं हो तो केवल श्रद्धान करो। ध्यान ठीक कर श्रद्धा को संभालो । श्रद्धा से ही अपना काम बनाओ। यही दार्शनिक रूप हैं । इसी से परम्परा चलती हैं परम्परा यथार्थ विश्वास पर आश्रित है । हमेशा संयम का भाव रखो । श्रावक का १३वां व्रत सल्लेखना हैं । जो अन्त समय में दिया जाता है । जब आयुपूर्ण होने का अवसर दिखलाई पड़े। तब सभी जीवों को क्षमा करके उनसे क्षमा माँगे । अच्छी तरह से इस समाधि को पालने से सुख की प्राप्ति होती है। मनुष्य जन्म की सफलता इसी व्रत से होती है । यह व्रत बड़ा ही दुर्लभ है। यह महल के ऊपर कलश चढ़ाने के समान अत्यन्त कठिन है ।
हृदय में
सुणहु साधा धम्पु हित कारणु
सो पालहु अखलमनि सुगड़ होड़ दुग्गड़ निवारण बुड्डत संसार महि हुह तरंडु ख्रिणमाहिं तारि बलिय कम्भ जे सुह असुह जीवि अनंतकालि ते तपबलि सड्डू निछलहु भवतरु कंद कुदालि ।।१५३ ।। अर्थ - अब हित का कारण साधु-धर्म को सुनो। उसका पालन सम्पूर्ण मन से करो, जिससे सुगति की प्राप्ति और दुर्गति का नाश हो । यह मुनि धर्म संसार में डूबते प्राणियों के लिये नौका के सदृश है और क्षण भर में पार कर देने वाला है । अनन्त काल में इस जीव के जो बलवान अशुभ कार्य हैं उनको तप के बल से नष्ट करो । यह साधुधर्म संसाररूपी वृक्ष की जड़ काटने के लिए कुदाली के समान है । इससे आत्मा शुद्ध बन जाती हैं ।
व्याख्या– साधु धर्म की महिमा का वर्णन करते हुए उसके पालन का संदेश दिया गया है । मन को स्थिर करके इस धर्म को धारण करो । यह धर्म सकल देश, सकलपापों का त्याग होने के कारण एक क्षण में संसार से पार करा देता है । पापों के कारण जो प्राणी संसार में भ्रमण कर रहे हैं उनके लिए यह धर्म नाव के समान हैं। यह मुनिधर्म संसार रूपी वृक्ष को छेदने के लिए कुदाली हैं। यह मुनिधर्म सभी धर्मों में प्रधान है । इसका पालन अवश्य करो। इसके द्वारा अपने मनुष्य भव को सफल बनाओ । जो इस धर्म का पालन नहीं करते वे मनुष्यभव