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मदनजुख काव्य
हुआ घड़ा मिलना शुभ है. लेकिन उसका फूट जाना अशुभ है । सधवा स्त्रियोका रोना-चिल्लाना भी अशुभ सूचक है । विधवा स्त्रीको तो देखना ही अशुभ माना जाता है और यदि वह धौकत्ती हुई अग्नि लेकर सामने आए तो वह अत्यधिक अशुभ माना जाता है और विश्वास किया जाना हैं कि मानों वह किसी का भस्म कर देना चाहती है । इस प्रकार के अपशकुन होने पर भी अभिमानी राजा मोह ने कोई ध्यान नहीं दिया और अपनो युद्ध-यात्रा पर निकल पड़ा ।
मुंडिय सिरु (नस) नकदउ हस्थि कपालु जिसु सम्मुह हुई छींक पयाणउ करत तिसु । तिण तुस चम्म कपास'सकोदय गुड लवण मोह चलंतह नगरह हूए ए सवण ।।९।।
अर्थ-(तत्पश्चात सह. मडाए हा. नकटे नर को देखा. जो हाथी के कपाल (मस्तिष्क) जैसा था । प्रस्थान करते समय (नताकें) सम्मुख ग़जा मोहको स्वयं ही छींक हुई । इसके पश्चात् उसने नगरसे चलते समय तृण, तुष, चर्म, कपास एवं कोदों सहित गुड़ नमक आदि पदार्थोंको भी देखा । उसके प्रयाणके समय इस प्रकारके शकुन (अपशकुन) हुए ।
व्याख्या-- इस गाथा में भी आठ वस्तुओं के दर्शन माह ने किार जो अपशकुन सूचक थी । सिर मुड़ाना लोकमें तभी होता है जब घरमें किसीका वियोग होता है । सिर मुंडाए मनुष्यको देखना अशुभ सूचक हैं । उस परसे उसका नकटा होना और भी अशुभतर होता हैं । इस प्रकारके मनुष्यको देखनेसे पता चलता है कि अपनी भी कहीं नाक कटने वाली है अर्थात् बेइजती या हार होने वाली है । अपनी छींक अपने सम्मुख होना यह भी अशुभ हैं । इस प्रकारकी छींक कार्यके निषेधको सृचित करती है । छीक पीछे होना ठीक है । यात्रा तो आनन्दका विषय है, इसमें छींक आना एकदम प्रतिकूल है ।
यात्राके समय निरर्थक निकृष्ट पदार्थोका देखना भी हानिकारक है । तृण निरर्थक है, तुषसारहीन है, चर्म मरणका सूचक है । कपास भी शरीरके लिए कार्यकारी नहीं है । कोदों निकृष्ट धान्य है । कर्दम सहित गुइ नमक आदि पदार्थ घातक हेतु हैं । यद्यपि दर्शनशास्त्र में कहा गया है कि इस प्रकारके दृश्य सर्वकालोंमें मरणार्क सूचक ही हों यह सुनिश्चित नहीं है जैसे
"भाव्यतीतयोः मरण जाग्रद्वोधयोः नारिष्येद्वोधो प्रतिहेतुत्वं ।" इस १. होवा २. स कदम