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________________ मदनजुद्ध काव्य चार अंग होते हैं-हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल | मोह भटने चतुरंग सेना सहित प्रयाग किया । मोहराजा ही सेनापति था । बाजे और ध्वजाओंके साथ उनकी सेना चल पड़ी । मोहने प्रबल संग्रामकी तैयारीकी थी । उसका अभिप्राय था, कि मैं सब लोगोंका एक छत्र राजा हूँ, परन्तु मेरे राज्यमें यह एक बैरी उपस्थित हो गया है, जो मेरी आझामें नहीं है । मुझे इस पर अवश्य विजय प्राप्त करना है । मैंने बहुत वीर देखे हैं। देखता हूँ यह कैसा वीर है? ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ने लगा । ग्यारह अपशकुन वर्णन आभानक छन्द : करिवि पयाणउ मोडु महाभडु बल्लियड सम्मुह झंखड्ड वाय वधूला झुल्लियड फुट्ट जलहर कुंम घाह तरुणीहि दिय ले आइ तहिं अगिणि धुकंती रंड-तिय ।।८।। अर्थ—महाभट मोह प्रस्थान कर जब चलने लगा तब उसके सम्मुख जंखडु (पत्ते और धूल भरी) और बधूलउं (गोल-गोल) वायु झुलने (चलने) लगी । जल का भरा हुआ घड़ा फूट गया | तरुणी स्त्रियाँ रोने, चिल्लाने लगी तथा राँड-नारी (विधवा-स्त्री) धोकती हुई ज्वाला वाली अग्नि वहाँ ले आई (इस प्रकार के अपशकुन हुए) । व्याख्या---इस गाथामें कविने चार अपशकुनोंको उपस्थित किया है। १. प्रतिकूल वायु का चलना, २. जलसे भरे घड़ेका फूटना, ३, तरुणी स्त्रियोंका रोना ४. विधवा नारीका धोंकती हुई ज्वाला अग्निको सामने लाना । मोहके प्रयाण करते समय ये चारों अपशकुन हुए । जब कोई व्यक्ति किसी कार्यकी सिद्धिके लिए घरसे निकलता है तो इस प्रकारके शकुन, अपशकुन उसके कार्यको सिद्धि-असिद्धिकी सूचना प्रारंभमें ही दे देते हैं । इसलिए अच्छे पुरुष अपशकुन होनेपर प्रस्थान नहीं करते और समयकी अनुकूलता होने पर ही कार्यके लिए जाते हैं । इन शकुन निमित्तोंका वर्णन भद्रबाहसंहिता आदि ग्रन्थों में आया है। जब वायु पीछेसे आती है तो वह अनुकूल कहलाती हैं क्योंकि वह चलने में सहायक होती है किन्तु सामनेसे आने वाली वाय् नेत्रोंमें प्रवेश कर जाती है और आगे चलनेमें बाधक होती है । इसलिए प्रतिकूल वायु कहलाती है । ऐसी वायुको बधुलया (बवंडर) वायु कहते हैं । पानी भरा १ सह आगि धुरवेतिय
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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