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________________ मदनजुद्ध काव्य गढ़ है, वहाँ जाकर अपनी श्रेष्ठ सेनाकी सम्यक् व्यूह रचना की । दोनों (मोह और मदन) अपने मनमें गर्वधारण कर साहसके साथ उसी प्रकार चले, जिस प्रकार प्रबल पवनके उछलनेसे सघन मेघोंकी घटा फट जाती है (छिन्न-भिन्न हो जाती है) । ___व्याख्या-मोह भट कलिकालको साथमें इसलिए लेकर चला कि वह धर्मपुरी गढ़के मार्गों से पूर्णरूप से सुपरिचित था । सुपरिचित आदमीके साथ चलनेसे अगम्यमार्ग भी गम्य हो जाता हैं । वहाँ से चलकर दाना मदनके पास पहुंचे । वहाँ मिलकर तीनोंने कुमंत्रणाकी । कुमंत्रणा उसको कहते हैं, जिसमें दूसरेको जानसे मार दिया जाय । उसका सर्वस्व नष्ट कर दिया जाय, जिससे कि आगे उसकी परम्परा ही न चले । जिसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, उसे वैर-विरोध, हत्याही अच्छी लगती है । वह अच्छी विचारधाराको सुनता ही नहीं हैं । ऐसा राजा कुराजा कहलाता है । उसके सेवक भी उसी प्रकारके दुष्ट होते हैं । आदीश प्रभुने सुमन्त्रणाकी थी । अहिंसा धर्मसे परिपूर्ण विचार करनेको समन्त्र कहां हैं । वहां किसाके साच-विरोधको कम नही होती । सबके ऊपर क्षमाभाव होता है । शत्रु मित्र पर सम्भाव होना ही श्रमण संस्कृति है । जहाँ श्रमण-संस्कृति होती है, वहाँ निर्भयता विश्वस्तता भी रहती है। यह बात केवल मनुष्यों में ही नहीं पशु-पक्षियोंमें भी देखी जाती है। गाथा छन्द : रहहिं सि किम यण घट्ट 'जुडिया सव सैन मिलिय गजयलू सब मिक्ति घले सुभट्ट पयाणओ कियउ भडु मोह ।।८८।। अर्थ-(प्रबल पवनके चलने पर) घनकी घटाएँ कैसे स्थिर रह सकती हैं अर्थात् एक दूसरेसे टकरा ही जाती हैं, उसी प्रकार सब सेनाके एकत्रित हो जानेपर गज, रथ, और घोड़ोंकी बहुत थट्ट (भोड़) हो गई । सुभट भी मिल कर चलने लगे । इस प्रकारकी सेना सहित मोह भट ने प्रयाण किया । व्याख्या-मोहराजा अपनी शक्तिसे मदनका साथ देने चला इसलिए साथमें सेना भी ले ली । सेना का अर्थ होता है___ "इनेनसहिता सा सेना" । स्वामीकी शोभा सेनासे और सेनाकी शोभा स्वामीसे होती है । सेनाके १. ऐसा भी पाठ है: जुडिया दल सबल गज्जि गज उ8 सब खिडि चलिय सुभदंड
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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