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________________ मदनजुद्ध काव्य भटराज मोह मदन की सहायता हेतु जाता है दोहा छन्द : इत्ती बात सुणेवि करि चिति उम्पन्नऊ कोहु । सैन सयल संखुहि करि इस चलिलउ भडु मोहु ।। ८६।। अर्थ—(कलिकाल की) इतनी बात सुनकर मोहके चित्तमें क्रोध उत्पन्न हो गया । मोहभटने अपनी समस्त सेना एकत्रित कर व्यूहरचना की और इस प्रकार (युद्धके लिए) चल पड़ा । व्याख्या-कलिकालने मोहसे कहा कि गजवीर वही होता है जिसका अपना गढ हाता है, सैनिक होते हैं, मत्र प्रताने वाले योग्य गुरु होते हैं । अक्षयधन होता है । समय भी अनुकूल होता है । अंतरंगमे भानोंका उत्साह होता है । ये सभी भाव श्री १००८ आदीश्वर भगवान और विवेकके पास हैं | वे शान्तरस से युक्त सवोपरि वीर हैं । परन्त मोहने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, मंत्रियोंसे भी उसने कोई सलाह नहीं ली और अनुकूल अवसरके बिना ही प्रचण्ड क्रोधसे भरकर अपनी सेनाको सजा लिया । इस समय प्रभु और विवेक सहज स्वभावमें निमग्न हो रहे थे । उनका भूषण क्षमाधर्म था । उनके पास अपूर्व रत्नत्रयधन था । सभी प्रकारके शुद्ध गुण, उनके सैनिक थे । इस प्रकारके अवसरमें युद्ध नहीं करना चाहिए । परन्तु जब जिसका विपत्तिकाल आता है, उसकी बुद्धि मलिन हो जाती है"समापनधिपत्तिकाले थियोऽपि पुंसामलिना भवंति ।।" मोहकी भी यही स्थिति हुई । यहाँ मोहको भट कहा गया है । भटका अर्थ है विवेकहीन, जो कि बिना विचारे ही लड़ना जानता है । आगे पीछे की नहीं सोचता । वस्तु छन्द : मोहु चल्लिउ साथि कलिकालु जहिं हुंक्तउ मदन भडु तहिं सु जाइ वि कुमंतु कीयउ गळु विषमउ यम्मपुरु तहिं सुसैन संबुहि लीयउ दोनई चल्ले पयज करि गल रिउ मनमाहि पवनु प्रबलु जब उच्चलइ घण-घट केम रहाहिं ।।८७।। अर्थ:-भोहभटके साथ कलिकाल भी चला | जहाँ मदनभट था, वहाँ जाकर उसके साथ अच्छी तरह कुमन्त्रणाकी । जहाँ विषम धर्मपुर
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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