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________________ ४. ] मदनपराजय वञ्चकता, नुशंसता, चंचलता और कुशीलसा- ये दोष स्त्रियों में निसर्गसे पाये जाते हैं। फिर स्त्रियाँ सुखद कैसे हो सकती हैं ?" और "जिनको वारणो में कुछ अन्य होता है, मनमें कुछ अन्य रहता है तथा कर्ममें कुछ अन्य हो रहता है वे स्त्रियाँ सुखदायी कैसे हो सकती हैं ?" और भी कहा है.. "स्त्रियाँ कुशीलोंके साथ विचरण करती हैं। कुल ऋम का उलघन करती हैं और गुरु, मित्र, पति तथा पुत्र किसीका भी ध्यान नहीं रखतीं। जो महापंडित देव, दैत्य, सांप, व्याल, ग्रह, चन्द्र और सूर्यकी गतिविधिके परिज्ञाता हैं वे भी स्त्रियोंका प्राचार नहीं जान पाते।" प्रथ च "ओ तत्त्वज्ञानी सुख-दुख, जय-पराजय और जीवन-मरणके तत्वको समझते हैं वे भी स्त्रियों के व्यवहारसे ठगाये जाते हैं। जलयान समुद्र के एक छोरसे दूसरे छोरतक पहुँच जाते हैं और ग्रह आदि आकाशके। परन्तु स्त्रियोंके दुश्चरित्रका पार कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता।" मौर-- "क्रुद्ध हुए सिंह, व्याघ्र, व्याल, अग्नि और राजा भी उतना अनिष्ट नहीं करते जितना एक ऋद्ध निरङकुश नारी मनुष्यका कर सकती है ।" एवञ्च "स्त्रियाँ धनके हेतु हैसती हैं और रोती हैं । मनुष्यको विश्वासी बना देती हैं, लेकिन स्वयं विश्वस्त नहीं होती। इसलिए कुलीन, सुशील और पराक्रमी मनुष्यको चाहिए कि यह श्मशानके घड़ों के समान इनका परित्याग कर दे।"
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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