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________________ ३४ ] मदनपराजय महाराज, कृपाकर बताइये, हमारे स्वामी जिनदत्त किस पर्यायमें पहुंचे हैं ? ___ मुनिराज अवधि जोड़कर कहने लगे- हे पुत्रि, क्या बतावे ? कुछ कहते नहीं बनता। जिनदत्ता कहने लगी-महाराज, इस सम्बन्ध में आप बिलकुल शट्टा न करें। क्योंकि संसारमें परिणामोंके वश उत्तम जीव भी अधम हो जाता है और अधम भी उत्तम हो जाता है। मुनिराजने कहा-पुत्रि, यदि तुम्हारी ऐसी समभ. हैं, तो यह जानो कि तुम्हारा पति तुम्हारे घरके आँगनको बावड़ीमें मेंढक हुआ है। * १५ तदाकण्यं सा विस्मितमनसा चिन्तयामासअवश्यमिदं सत्यम् । यतस्तद्वाप्यां प्रतिदिनं मम सम्मुखो धावन्नागच्छति यो दधुरः च एव मम भर्ता भवति । यतो नान्यथा मुनिभाषितमिति । एवं चिन्तयित्वा भूयोऽपि मुनि परछ। तद्यथा वशीकृतेन्द्रियग्रामः कृतज्ञो बिनयान्वितः । निष्कषायः प्रसन्नात्मा सम्यग्हष्टिमहाशुचिः ॥२०॥ अवालुर्भावसम्पन्नो नित्यषटकर्मतत्परः । व्रतशोलतपोवाजिनपूजासमुद्यतः ॥२१॥ नवनीतसुरामांसमधूदुम्बरपञ्चकैः। अनन्तकायकाज्ञातफलादिनिशिभोजनः ।।२२।। प्रामगोरससम्पृक्त विरलैः पुष्पितो (तौ) वनैः । वध्यहद्वितयातीतप्रमुखरुज्झितोऽशनः ।।२३।। (युग्मम्) पञ्चाणुवतसंयुक्तः पापभीरुदयान्वितः। एवंविधश्च मे भा भेकोऽभूत् स कथं प्रभो ।।२४।। (कुलकम्)
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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