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"जो देव, स्त्री, शस्त्र, जप माला और राग-द्वेषसे कलङ्कित हैं तथा निग्रह और अनुग्रह में तत्पर रहते हैं, सिद्धि कन्या उनके पास फटकती तक नहीं है ।"
मदनपराजय
रति कहने लगो-देव, इसलिए मेरो आपसे विनय है कि आप व्यर्थ में ध्यान
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भी है " व्यर्थमा न कर्त्तव्यमार्त्तात्तिर्यग्गतिर्भवेत् । यथाऽभूद्ध मसेनाख्यः पक्वे चैर्वारुके कुमिः ॥ "
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"निष्प्रयोजन प्रार्त्त ध्यान नहीं करना चाहिए। क्योंकि प्रातध्यानके कारण पशु-पर्याय में जन्म लेना पड़ता है । जिस प्रकार प्रातध्यान करने से हेमसेन मुनि पके हुए खरबूजाके कीड़ा बने ।”
तोत्सवा
* ६ श्रय कामोऽवावीत् कथमेतत् ? साऽब्रवीत्अस्ति कस्मिंश्चित् प्रदेशे चम्पानाम नगरी सतसप्रबृप्रभूतवरजिनालयजिनधर्माचारोत्सवसहित भावका घनहरिततरुखण्डमण्डिता, सकल भूमिभागोत्संगसञ्चरद्वरविलासिनीविलासचलितचतुरश्चरणरतिनपुर रसनारबबधिरितदिगन्तराला, वर्णत्रय गुणशुश्रूष्यशूद्रजनपरिपालितजनपदा, नानाविषयगत नेकपात्र वैदेश्य सार्थ समस्तज्ञानसम्पनोपाध्याय - शतशोभिता, प्रचुरपुरवधूय बन चन्द्रज्योत्स्नोद्भासितवसुधाधवलमालोपशोभिता । एवंविधायां नगय हेमसेननामानो मुनयः कस्मिश्चिज्जिनालये महोप्र तपश्चरणं कुर्वन्तो हि तस्थुः । एवं तेषां तपश्चरणक्रियावर्त्तमानानां कतिपयदिवसेमृत्युकालः प्राप्तः । अथ यावत्तषामासनमृत्युर्वर्तते तावलस्मिश्चेत्यालये श्रावकजना विविधकुसुम फलाद्यै राराधनापूजां चक्रिरे । ततोऽनन्तरं प्रतिमैकायाश्चरणोपरि सुपक्वमेकमर्वारुकं यत्
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