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पंचम परिच्छेद
नानाहारविचित्रैविविधमणिमय
सम्प्रापुस्तत्र शीघ्र जिनवर
रम्ययक्षःस्थला था:
ततो हि मुक्तधा सहितो जिनेन्द्रो
यात्रामङ्गलं मायनार्थम् ||३६|| (युम्नम् )
कृतामरीधर्वर पुष्पवृष्टि एव
तथा च
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मनोरथेभंथ स आरुरोह ।
सुन्श्यं पुरतोऽमरेन्द्रः ॥ ४० ॥
कुर्वन्ति शेषाभरणं दयाथा
वागीश्वरी गायति मङ्गल । प्रणाविताः शखमृदङ्गमेर्यः
सत्कालाद्या पटहा: सुरोधः ॥४१॥
अनन्त केवलज्ञानवी पिकानां हि तेजसा । विभात्यनुपमा लोके वरयात्रा जिनप्रभोः ॥४२॥
[ पंचम परिच्छेद ]
* १ जब इन्द्रने देखा कि कामदेव विजय, पौरुष और गर्वसे हीन होकर युवतियोंकी हृदयकन्दरा में प्रवेश कर गया है तो वह बहुत प्रसन्न हुआ । उसने तुरन्त ही दयाको अपने पास बुलवाया और उससे इस प्रकार बात करने लगा ----
दये, तुम मोक्षपुर जाओ। वहाँ पहुँचकर सिद्धसेनसे कहना कि वह विवाह के लिए अपनी कन्या लेकर यहाँ शीघ्र श्राबें I