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चतुर्थ परिच्छेद
[ १६५ जब तक शुक्लध्यान वीर इस दृश्यको नहीं देखता है, तब तक जिनराज शीघ्र ही कामके निकट प्राकर कहने लगे-मरे काम, अब भागकर तू कहाँ जा रहा है ' wणा फिरसे सगनी के जहर में प्रवेमा करना चाहता है ? तुम जो कहते थे कि मैंने संसारमें किसे पराजित नहीं किया है, सो यदि तुममें हिम्मत हो तो मेरा सामना करो। इतना कहकर जिन राजने धर्मबाणावली को धनुषपर चढ़ाकर कामके वक्षस्थल में इस प्रकारसे प्रहार किया कि वह पाहत होकर जमीन पर गिर पड़ा।
जिस प्रकार वायु वृक्ष को उखाड़कर गिरा देती है, साप गरुड़के पंखोंसे पाहत होकर गिर पड़ता है और पर्वत इन्द्रके वफा-प्रहारसे गिर जाता है उसी प्रकार काम जिनराजकी बाणावलीसे पाहत होकर गिर पड़ा।
कामके भूतलपर गिरते ही जिनराजकी सेनाने उसे भा घेरा और बाँध लिया। इस प्रकारको अवस्थामें पड़े हुए कामको निम्नलिखित पद्य की स्मृति सजग हो उठी
"पूर्वजन्मकृतकर्मणः फलं पाकमेसि नियमेन वेहिनाम् । नोतिशास्त्रनिपुणा बदन्ति यद् दृश्यते तदधुनाऽत्र
सत्यवत् ।” 'नीतिकारोंने जो उपदेश दिया है कि पूर्वजन्ममें किये हुए कर्मोका फल देहधारियों को अवश्य भोगना पड़ता है, वह आज खुले रूप में सामने पा गया है।"
* १८ ततस्तके बदन्त्येवम्-"अयमषमो बध्यते (ताम)।" एके वदन्ति-"गईभारोहणं शिरोवपनमस्य च कर्तव्यम् ।" एके बदन्ति-''चारित्रपुरबाह्य प्रदेशे शूलारोहणमस्य क्रियते (ताम्) ।" एवमावि सकलसामन्सवोरक्षत्रियाः