SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११. ] मदनपराजय अन्याय, अहो देव, जिनेनोऽसौ यदि कथमपि संग्रामसम्मुखो भवति, तसस्य किंधिवग्यान कर्तव्यं भवति । निगडबन्धर्बन्धयित्वाऽविचारकारायतने प्रक्षिप्यते (ताम्) । तयाकर्ण्य पंचेषुना(णा)बहिरात्मान बन्दिनमाहूय समनिहितम्-अरे अहित्यन्, गजरा स्वं जिनं मे दर्शयसि तत्सव प्रभूतं सम्मानं करिष्यामि । एवमुक्त्मा स्मरवीर- नामाङ्कितं कटिसूत्रं बन्दिनो हस्ते वत्स्वा न ततरं सम्प्रेषितः । ___* ३ जब इस प्रकारके माङ्गलिक मुहूर्त में जिनराज कामके ऊपर चढ़ाई करने के लिए चल पड़े तो काम के गुप्तचर संज्वलन ने मोचा-अब मुझे यहाँ रहना ठीक नहीं है । यह सोचकर वह तुरन्त कामके पास चला पाया और प्रणाम करके कहने लगा-देवदेव, जिनराज महान् बली सम्यग्दर्शन वीरको साथमें लेकर आपके ऊपर चढ़ाई करनेके लिए मा गये हैं। इसलिए मैं तो अब किसी सुरक्षित स्थानमें जा रहा हूँ। कहा भी है : "कुल के लिए एकको छोड़ दे। गांवके लिए कुलको छोड़ दे। जनपदके लिये गाँवको छोड़ दे। और अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वीतकको छोड़ दे। बुद्धिमान् मनुष्य देशको गांवसे बचाते हैं, गांवको कुलसे बचाते हैं, कुलको एक व्यक्तिसे बचाते हैं और अपने को पृथ्वी तक देकर बचाते हैं।" संज्वलनकी बात सुनकर कामको बड़ा क्रोध हो पाया। वह कहने लगा-संज्वलन, यदि तुमने यह बात फिर मुहसे निकाली तो मैं तुम्हारा वध कर डालूगा । क्योंकि __ संसारमें यह बात न कहीं देखी गयी है और न सुनी गयी है कि हिरन सिंहके ऊपर, चन्द्र-सूर्य राहुके ऊपर और चूहे बिलावके ऊपर विक्रमण करते हैं।
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy