SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मदनपराषय यदि यह बात है तो तुम मेरी प्रतिज्ञा भी सुन लो। 'मैं निश्चम करता हूँ कि यदि प्राजकी लड़ाईमें जिनराजको जीत कर मैंने मुक्तिकन्याके साथ विवाह नहीं किया तो में नकर ही किस का ?' यह कहकर मकरध्वजने कुसुम-बारगवाला धनुष हाथ में लिया और जिनराजसे संग्राम करने के लिए चल पड़ा। २५ अचं तमुत्सुकत्वेन निर्गच्छन्तमवलोक्य मोहोऽजल्पतदेव, वचनमेकं शृणु । निजबलमज्ञात्या संग्रामार्थ न गम्यते । उक्तंच, यत: "स्वकीयबलमज्ञाय सङ्ग्रामार्थन्तु यो नरः । गच्छत्यभिमुखो नाशं याति वह्नौ पतङ्गवत् ।।५।।" तपा स "भृत्यविरहितो राजा न लोकानुग्रहप्रदः । मयूखैरिव दीप्तांशुस्तेजस्थ्यपि न शोभते ॥६॥" अन्यच्च "न विना पार्थिवो भृत्यन भृत्याः पाभिवं विना । एतेषां व्यवहारोऽयं परस्परनिबन्धनः ॥७॥" तथा च "राजा तुष्टोऽपि भृत्यानामर्थमात्रं प्रयच्छति । तेन (ते तु) सम्मानमात्रेण प्राणरप्युपकुर्वते ।।८।। एवं ज्ञात्वा नरेन्द्रण भृत्याः कार्या विचक्षणाः। कुलीनाः शौर्यसंयुक्ताः शक्ता भक्ताः क्रमागताः ॥६॥" तथा च "न भवेद्वलमेकेन समवायो बलावहः । तृणैरेव कुता रज्जुर्यया नागश्च बढ्यते ॥१०॥ .
SR No.090266
Book TitleMadan Parajay
Original Sutra AuthorNagdev
AuthorLalbahaddur Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy