________________ 648 लघुविद्यानुवाद - अथ रक्त गुजा कल्प पुष्प होय आदित्य को, तव लीजिये यह मूल / सुकर वारी रोहिणी, ग्रहण होय अनुकूल // 1 // कृष्ण पक्ष की अष्टमी, हस्त नक्षत्र जो होय / चौदह स्वाति शतभिषा, पूनों को लेय सोय // 2 // अर्द्ध निशा कारज सरे, मन की संज्ञा खोय / धूप दीप कर लीजिये, धरे दूध ले घोय // 3 // जो काहू नर नारी . विष कोई को होय / विष उतरे सब तुरंत ही, जड़ी पिलावे धोय // 4 // जो तिलक लगावे भाल पर, सभा मध्य नर जाय। मान मिले स्तुति करे, सब हो पूजे पाय // 5 // हांजी हांजी सब करे, जो वह कहे सो सांच / एक जड़ी के जुगत से, सब नचाव नाच // 6 // तांबे मूल मढ़ाये के, बांधे कमर के सोय / नव मासे व नारी के, निश्चय बेटा होय // 7 // ऋतुवंती के रक्त सो, अंजन प्रांजे कोय / देखत भाजे सैन सब, महा भयानक होय // 8 // काजल हूं घिस प्रांजिये, मोहे सब संसार / गाली दे दे ताडिये, तोय लगा रहे लार // 6 / / मधु सु अंजन प्रांजिये, देखे वीर वैताल / जो मंगावे वस्तु कू, ले आवे सो हाल // 10 // जो घिस कर लेपन करे, दूध संग सब अंग / भूत प्रेत सब यक्ष गण, लगे फिरत सब संग // 11 //