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________________ लघुविद्यानुवाद ५४५ अथ बीजोत्पत्ति :-स्र हुक्षु सस्तु धूमध्वजो, 'रः', क्षतज. उ काल काम. महाकाल स्र ' दहन बीज 'फल' शत्रु दहनादि क्ष. क्षितिबीज 'उ' काल वक्त्रा सयोगात् स्थावरकरण द व्योम वक्त्र काल वक्त्रा सयोगात् । 'व्यापकत्व' फल क्षुक्ष: त्रैलोक्य ग्रसनबीज सयोगात् दा कृष्टि कृत्फल च 'त्रयस्य' फल ज्ञेय ज्वल ज्वल ज्वलेति च ज्वाला मुख सज्ञात्वात् ल ल ल ल चतुष्कस्य फल प्रवल प्रवल इति चतुष्क लस्य वल भेदि सज्ञात्वात् च चड रूप पुनश्च काल रूप पुनश्च चामुण्डा रूप सिह वाहनत्व श्री लक्ष्मी बीज 'स्र ' दहन बीज हा आर्ष बीज ही मूल बीज ।इति। श्री स्र ह्रा ह्री ॥इति।। रत्न चतुष्क बिख्यात बीजकोशात् परिज्ञेय । षट् कोण चक्र मे चक्रेश्वरी देवी की मूति लिखकर, फिर षट्कोण चक्र की कणिका मे क्रमश आ, हु, क्षुह्री च, के लिखे, फिर षट् कोण चक्र के ऊपर चतुष्कोण रेखा खीचे । ऊपर प्राधा इच का अतराल छोड कर एक रेखा चतुष्कोण और खीचे, दोनो रेखामो के बीच मे ऊपर स्रक्षु क्षु लिखे । दक्षिण मे च च च च ल ल म ल लिखे । उत्तर मे च चं च चल चल लिखे, नीचे 'श्व' श्री न ह्रा ही लिखे। फिर भू पुर को लिख कर वज्र के ऊपर ल ल ल ल लिखे। यन्त्र न० ७ - - I . खं चु - च ल चं चं चं च ल ल दि चं Gol. ल ल चं चं ल मा II
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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