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________________ ५४४ लघुविद्यानुवाद कणिका मे आ, द्वितीय मे हु, तीसरे मे क्षु , चौथे मे ह्री, पचम मे च, छठे मे के लिखे, फिर पट्कोण के बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लिखे । षट्कोण के ऊपर ६ वलय खीचे। प्रथम वलय कार मे १४ ह्रा लिखे। द्वितीय वलय मे २२ ही लिखे। तीसरे वलय मे २३ ह्रौ लिखे। चौथे वलय मे २७ र कार लिखे । पचम मे ३४ र कार लिखे । छठे मे ३२ र कार लिखे । फिर वलया कार पर त्रिकोण रेखा खिचे । त्रिकोण के अन्दर १२ र कार खीचे । इस प्रकार यन्त्र बनावे । ___ सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर यन्त्र लिखे, चादी अथवा तावे के ऊपर खुदवाकर यन्त्र सामने रखकर मन्त्र का विधिपूर्वक जप करे, साढे बारह हजार तो, तीनो लोक मे क्षोभ होता है। ये यन्त्र मन्त्र त्रैलोक्य क्षोभन है। तष्टि कर्मरणार्थ सप्तम काव्यम् स्र क्षु हु क्षु विचित्रे त्रि नयन नयने नाद विन्दून नेत्रे । च च च वज्र धारा ल ल ल ल ललिते नील के शालि केशे । च च च चक्र धारा चल चल चलिते नू पुरै लेलि लीले। श्री स्र ह्रा ह्री सु कीर्ति सुर वर नमिते त्राहि मा देवि चक्रे ॥७॥ टीका . हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे सु क्षु हु क्षु विचित्रे पुन कथ भूते त्रि नयने स्त्रिभि लोचने नयन वस्तु प्रापरण यस्या सापून कथ भूते नाद विन्दून नेत्र अद्ध चन्द्राकार विन्दुभिः रूग्र नेत्रे च च च वज्रधारी ल ल ल ल ललिते (भ्र ) नूपुर विराजमाने पुन कथ भूत हे अलिकेशे, भ्रमर केसे, त्व नीलकेशासि पुनः कथ भूते, नूपुरै च च च चक्र धारया चल चल चलिते पुन. कथ भूते लोल च चला लीला यस्याः सा पुन: कथ भूते श्री तू ह्रा ह्री सु कीर्ति रसि पुन कथ भूते सुर वर नमिते त्व रक्षत्ये त्यर्थः । यन्त्रोद्धार षट्कोण चक्रमध्ये पूर्ववत मूर्ति विलिख्य ऊपरि स्त्र क्षु हु क्षु लिखत दक्षिणे च च च च ल ल ल ल इति उत्तरे च च च च चल चल । इति अधएव श्री स्र हा ही इति विलिखते पश्चात् नपुर विलिख्य वज्रोपरि ल ल ल ल इति लिखेत् । मूल मन्त्रोद्धार :-उं स्त्र क्षु हु क्षु श्री स्र ह्रा ह्री नम स्वाहा। विधि :-अस्य तुष्टि कर्मणोवोध्य. फल यशो लाभोऽभ्युदयश्चेति बोधव्य ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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