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________________ लघुविद्यानुवाद - - इस यन्त्र को चादी के ऊपर खुदवा कर पास मे रखे और मन्त्र का सवा लक्ष जप विधि विधान पूर्वक करे तो यश का लाभ, अभ्युदय की प्राप्ति होती है। ये तुष्टि कर्म के लिए है। वश्य, मोहनार्थ अष्टम काव्य ॐ ह्री फटकार मत्रे ह्रदय मुपगते रू धि वश्याधिकारे ह्रा ह्री क्ली क्लि सु घोपे प्रलय घन घटा टोप शब्द प्रनादे ।। वा फा क्रोध मूर्ते धगधगित शिख ज्वालिनि ज्वाल माले। रौद्र हु कार रूपे प्रकटित दर्शने त्राहि मा देवि चक्रे ।।८।। टोका .-हे चक्रे देवित्त्व मा पाहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे ॐ ह्री फट् कार मत्रे हृदय मुंपगते रूधि वश्याधिकारे ॐ ह्री फट् इत्येनेन रू धा त्यनेना कर्षण वशीकरणाधि कारे ह्रा ह्री कती क्लि सुघोषे सु शब्दे पुन कथ भूते प्रलय घन घटा टोर शब्द प्रन्नादे प्रलय काल सबधि मेघ घटा डबर शब्द, पुन कथ भूते वा फा क्रोवमय मूर्ते पुन कथ भूते धग धगिताऽग्निसिखे हे ज्वालिनि हे ज्वाला माले हे रौढ़े हु कार रूपे हू वेष्टित मन्त्र 'रूप प्रकटित दर्शने' प्रकरित दते हे चक्र देवित्व मा त्राहि रक्षत्येर्थ । अथ मन्त्रोद्धार -अस्मिन् अभ्यन्तरे ॐ ह्री फट् इति लिखेत् तदुपरि मूर्ति प्रलिख्य तदुपरि ह्रा ली क्ली क्लि लिख्यते दक्षिणे वा फा ह्री लिखेत् उत्तरे च धग धग ज्वल ज्वल रूद्र अधश्च ज्वालिनी दहर हु हु इति विलिख्याऽग्नि मण्डल कृत्वा ध्यायेदित्युद्धार । मूल मन्त्र '-ॐ ह्रीं फट् इति मन्त्र वश्ये ॐ ह्रा ही क्ली क्लि वा फाह्री धग २ उवालिनि उवल रूद्रे २९ फट चक्र स्वाहा। विधि .-अत्र वश्य मोहनाकर्षणानां कर्मणा वोध्यः । __ फल मपि तदात्मक मेव सबोध्य इति । अथ बीजोत्पति - अ विधु त 'उ' काल म महाकाल ॐ सिद्ध फलं शत्रु क्षय ह्रीं ह्र व्याम र सग्नि. ई धम्र भैरवी सयोगात ही वश्याधिकारे फट इति वश्य बीज ह्रा
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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