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________________ ५३६ लघुविद्यानुवाद लिखे, दक्षिण मे और उत्तर मे सात र र र र र र र कार तेज बीज को लिखे, नीचे क्षा क्षी क्षू प्रबल बल लिखे । ये यन्त्र रचना इस प्रकार हुई | इस यन्त्र को तात्रा, सोना या चादी पर खुदवा कर पास रखने से, वाक् सिद्धि ( वचन सिद्धि) होती है । तेज बढता है । प्रताप बढता है । मूल मन्त्र जो उपरोक्त चार प्रकार के है, उनका जप पुष्टि कर्म के लिए विधि पूर्वक करना चाहिये । जप करते समय गुरु से पूछकर पूर्ण विधि विधान ज्ञात कर जप करे । प्रत्येक मन्त्र का सवा सवा लाख जप करने से तेज व प्रताप बढेगा और दिव्य वचन का लाभ होगा । श्रथ तृतीय काव्य मोहन कर्म श्र झौद्र प्रू प्रसिद्ध सुजन जन पदाना सदा कामधेनु । गूक्ष्मी श्री कीर्ति बुद्धि प्रथयति वरदे त्व महा मन्त्र मूर्ते । त्रैलोक्य क्षोभयति कुरु कुरु हरह नीर नाद प्र घोपे । क्ली क्लि ह्री द्रावयन्ती द्रुत कनक निभे त्राहि मा देवि चक्रे ||३|| टोका . – हे चक्रे देवी त्व 'मा' त्राहि रक्ष रक्षेति श्रू झौ द्र् प्रू इति मन्त्रेण । 'प्रसिद्ध' हे चक्रे' देवि त्व सुजन जन पदाना सुष्ट जना सुजना स्तेषाये जन पदा. देशा तेषा त्व सदा सर्व स्मिन् काले ‘कामधेनु रसि' पुनः कथ भूते, हे वरदे हे महा मन्त्र रुमूर्ते त्वगूक्ष्मी श्री ि त्रिभिर्म्मत्र बीजाक्षरैः श्री कीर्ति बुद्धि प्रथयसि 'पुन ' कथ भूते हे नीर नाद प्रघोषि जलद् नाद शव कुरु २ हर ह इति मन्त्रेरण त्रैलोक्य क्षोभयती हे द्रुत कनकनिभे द्रुत तप्त षोडश वरिंणक स्वर्ण कान्ते क्ली किल ही स्त्री द्राव यन्ति त्यसि चास्मिन् काव्ये चतुभि पादै कामधेनु त्व प्रथम पदेन मनोभिप्सित कार्ये साधने द्वितीय पदेन श्री कीर्ति बुद्धि प्रथनत्व तृतीय पदेन त्रैलोक्य क्षोभरणत्व तूर्य पदेन स्त्री द्रावरण त्व सूचित मिर्त्यर्थ. । अथ यन्त्रो द्वार षट् कोण चक्र स मूर्तिक पूर्ववत् कृत्वा पश्चादुपरि श्रू झौद्र प्रू लिख्यते गू क्ष्मी श्री दक्षिणे उत्तरे हर ह कुरु २ अध. क्ली क्ली ह्री चक्रे इति यन्त्रो द्वार. । अथ मन्त्रो द्वार ॐ श्र झौद्र प्रू गू क्ष्मी श्री कुरु कुरु हर हर ह क्ली क्लि ही चक्रे स्वाहा । 2
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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