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________________ मूल मन्त्र -ॐ क्लि क्लिन्ने क्लि नित्ये नमः |१| ॐ ग्राहु क्षु ही नम |२| ॐ क्षा प्रा ॐ नम |३| लघुविद्यानुवाद 1. ॐ चक्रे क्षा क्षी क्षू प्रबल बल स्वाहा |४| इस श्लोक मे व यन्त्र में, ये चार प्रकार का मन्त्र पाया जाता है । इन मन्त्रो का जाप पुष्टि कर्म के लिए जपना चाहिये । इसके लिये १७ प्रकार के नियम जानना चाहिए । यन्त्र न० २ क्लिं क्लिन्ने क्लिं नित्ये किल किल GOL Che आं ५३५ आं 独典 यन्त्र - लेखन विधि पहले पट् कोरगा कार बनावे । बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति का प्रकार बनावे, फिर पट्कोण को करिंणका मे क्रमश नीचे वाली प्रथम करिंणका मे आ लिखे फिर दूसरी करिका मे 'हु ' लिखे, तृतीय करिंणका से 'क्ष' लिखे, चतुर्थ करिंका मे 'ही' लिखे, पचम करिणका मे 'च' लिखे, छठी करिंका मे 'क' लिखे । पट् वोजो के ऊपर क्लि क्लिन्ने क्लि नित्ये किलि किलि लिखे, क्षा यार्ड
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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