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________________ लघुविद्यानुवाद ४१५ ।।ॐ ह्रो ह्री ज्वी ज्त्री ला ज्वा प लक्ष्मी श्री पद्मावति ग्रागच्छ २ स्वाहा ।। एत विद्या अष्टोत्तर सहस्त्र श्वेतपुष्पैरष्टोत्तर शत जप्य श्री पार्श्वनाथचैत्येजपितः सिद्धिर्भवति । स्वप्नेमध्ये शुभाशुभ कथयति । ॥ ॐ नम चडिकायै ॐ चामु डे उच्छिष्ट चडालिनो . .. "अमुकस्य हृदय भित्वा मम हृदय प्रविशाय स्वाहा ।। ॐ उच्छिष्ट चडालिनीए -- अमुकस्य हृदय पीत्वा मम हृदय प्रविशेतक्षणादानय स्वाहा ॥ ___ॐ चामु डे अमुकस्य हृदय पिवामि । ॐ चामु डिनी स्वाहा । सित्थय पडिम काउ सपुणति अटुण्णतावेव-या होमे-सर्वरसिण वासकुण ।। मत्र ।। ॐ उ तिम मातगिनी अपद्रुपिस्सेपइ कित्तिएइपत्तलग्निचडालि स्वाहा ।। ॐ ह्र ह्री ह्र ह्र-एकातर ज्वर मत्र्य तावूलेन सह देयम् ।। ॐ ह्री ॐ नामाकर्षण । ॐ ग म. ठ. ठ गतिवध. ह्री ह्री द्र द्र ॐ देव २ मुखबध २ ॐ ह्री फट् क्रौ प्रोच्छि २ भी ठ ठ ठ कुडलीकरण । ॐ लोलु ललाट घट प्रवेश ॐ य विसर्जनीय अोष्ठ कठ, जिह्वा, मुखखिल्लउ तालु खिल्लउ ॐ जिह्वा खिल्लउ ॐ खिल्लउ तालू हैगरु सुवहुः चचु २ हरे ठ ठ महाकाली योगकाली कुयोगम्मूह सिद्धसिद्ध उए कु सप्प मुह बधउ ठ. ठ । सर्प मन्त्र -- ___ ॐ भूरिसि भूतिधात्री विविध चूर्णेरलक्षता स्वाहा । भूमि शुद्धि । डाकिनी मन्त्र - ___ ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय शाकिनी योगिनीना-मडलमध्ये प्रवेशय, आवेशय, सर्वशाकिनी सिद्धि सत्त्वेन सर्षपास्तारय स्वाहा । सर्षप तारण मन्त्र : नमो सुग्रीवाय ह्री खट्वाग, त्रिशूल, डमरुहस्ते तिस्तीक्ष्णक कराले वटेलानलकपोले लुचित केशकपाल वरदे । अमृतशिरभाले । गडे ।-सर्व डाकिनीना वशकराय सर्वमन्त्रछिदनी निखये आगच्छ भवति-त्रिशूल लोलय २ इ अरा डाकिनी बल ३। शाकिनीना निग्रह मन्त्र :-- नरलइ किलइ फेत्कारमडलि असिद्धिहइ निवारइ द्रोसममै पाउसिपइ सइहाल पुलिमाइ २ रक्त सी पुत्तपसम न करसी। डाकिनी मन्त्र - ॐ ह स ब क्ष कम्ल्छ भा ह्री ग्ना ज फट् ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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