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________________ लघुविद्यानुवाद १८० - - विधि :-१०८ बार स्मरणे ना तीता नागत वर्तमान स्वप्ने कथयति। मन्त्र :-ॐ ह्रीं त्रिशुलिनी प्रत कपालस्तां नमुड मुक्तावलि बद्ध कंठां कृतान्तहारां रूधिरौधं संप्लुतां तामेव रोद्रीं शरणं प्रपद्य अमुकं विस्फोटक भया द्रक्ष २ स्वाहाः। विधि -ये मन्त्र केशर, कपूर, गोरोचन से लिखकर भुजा के बाधने से शीतला का दोष जाता है। मन्त्र :-ॐ काम देवाय काम वशं कराय अमुकस्य हृदयं स्तम्भय २ मोहय २ वशं __ मानय २ स्वाहा । विधि -अनेन मन्त्रेणामिमन्त्र्य यद्वस्तु यस्य कस्याऽपि दीयते स वशी भवति । मन्त्र :-ॐ सम्मोहिनी महाविद्य जंभय स्तम्भय मोहय, श्राकर्षय पातय महा ___ संभोहिनी ठः । स्मरण मात्रेण सिद्धिर्भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं अरहंत देवाय नमः। विधि :-१०८ बार वाद के समय जपने से तथा प्रौर कार्य मे तो जय होय । मन्त्रि के कपडा मे गाठ दीजे तो चोरी न कर सके तथा सर्पादि वस्त्र से दूर रहे। णमाकार मन्त्र उल्टा जपे वन्दी मोक्ष होय बिना कार्य उल्टी नाही जपि जै। णमोकार मन्त्र ३ बार पढकर धूल चू टी के फूक दै इके जे के माथे डारे सो वश्य होय। चौथ तथा चौदश शनिवार को णमोकार मन्त्र पढि के सन्मुख तथा दाहिने बाई तरफ फ कि दीजे पढि पढि के वेरी देखते ही भागि जाय । मन्त्र :-ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आयरियाणं, ॐ णमो उज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूरणं । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय अपराजित शासनाय चमर महा भ्रमर भ्रमर भ्रमर रूज २ भुज २ कड़ २ सर्व ग्रहान् सर्व ज्वरान् सर्व वातान् सर्व पीडान् सर्व भूतान् सर्व योगिनीन् सर्व दुष्टान्नाशय क्षोभय २ ऊ कः धः मः यः रः क्षि क्षं सर्वोपसर्गान्नाशय २ हूं फट स्वाहा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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