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________________ N widnacationsaintainshashmanasanikenusakatenaminimins प्रस्तावना द्वादशाग जिनवाणी के ग्यारह अग चौदह पर्व लोक विथत हैं, इनमे विश्व के समस्त ज्ञान विज्ञान का सार है, नवीन एव प्राचान प्राच्य एव प्रतीच्य सभी प्रकार के धर्म-दर्शन साहित्य कला, सस्कृति, अन्तरिक्ष विद्या के साथ ही मत्र-तत्र यत्र को अनेक विद्याओ का अद्भुत भण्डार इसमे समाया है। जैन विद्या में विद्यानुवाद सुकुमार सेन को प्रसिद्ध कृति है, प्रस्तुत लघुविद्यानुवाद इसी कोटि का नयनाभिराम सर्वाङ्ग सुन्दर, रगोन चित्रो-यत्रो मत्रो तत्रो तथा अनेक औषधि रसायन प्रयोगो से मडित दुर्लभ एव सग्रहणीय ग्रथ है। मत्र शक्ति शब्द ब्रह्मा, दिव्य ध्वनि, नाद तरगो एव वाक शक्ति के जीवन्त चमत्कार आधुनिक विज्ञान ने हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिये है। रेडियो, टेलोविजन, टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन, टेलीकास्ट टेलिस्कोप, fax फेक्स-(ध्वनि चित्र) सभी शब्द शक्ति की महत्ता और मत्र विज्ञान को गुण गरिमा का जीवन्त उदाहरण है। इनसे मात्र ज्ञान जानकारी और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एव अन्तरिक्ष से मानव का सम्पर्क ही नही होता अपितु शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न, बुद्धि विस्तृत, और प्रात्मचेतना मे शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। मत्र मे मनन, चितन, उच्चारण, द्वारा (त्रारण) रक्षा शक्ति तो होती है। मत्र लौकिक और अलौकिक शक्तिदाता, सन्तोप विधाता तथा महान आत्माओ से सम्पर्क भी कगता है । मन की शुद्धि, विचारो की पवित्रता, साहस की वृद्धि, मत्र द्वारा निश्चय ही होती है । ॐ आर्य, अनार्य, वैदिक, श्रमण बौद्ध एव विश्व की समस्त साधना सम्प्रदायो मे एक मत से अनन्त शक्तिसामर्थ्य और गुणो का भण्डार एव मन्त्रराज है। जैसे बीज मे विशाल वट वृक्ष समाया रहता है वैसे ही बीजाक्षरो मे अनन्त शक्ति होती है। मत्रो का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया जा सकत १ केरल, २ काश्मीर, ३ गौड तीन भारत के प्रसिद्ध मत्र सप्रदाय है। कुछ विद्वान १ छिन्न, २ रूद्ध, ३ शक्तिहीन, ४ शताधिक भेदो मे मत्रो की गणना करते है ।'साधना की दृष्टि से १ दक्षिण मार्ग, सात्विक साधना २ वाममार्ग, ३ मिश्रमार्ग रूपो मे मानते है। कुछ ऋपियो ने-१:पुरुष स्त्री, नपू सक मन्त्र २ सिद्ध-साध्य सुसिद्ध अरिमन्त्र ३ पिण्ड कर्तरी बीज, मालामन्त्र, ४ सात्विक-राजसतामस मन्त्र ५ सावर डावर मन्त्र इसी प्रकार भी वर्गीकरण किया है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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