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________________ १६६. मन्त्र :--हउ ं सिठ ह उ संकरू हउं सुपर मत्तात् विसुरं जजं विसुखाउं विसु श्रवले विरिण कर उं जादि सिचा हुउ सादिशि निर्विस कर उ हरो हर शिव नास्ति विसु । लघु विद्यानुवाद हिगु, वच दोनो समान मात्रा मे लेकर चूर्ण करे, उस चूर्ण को बकरी के मूत्र के साथ मिलाकर पिलाने से सर्प का विप दूर होता है । विधि :- थावर विष भक्षरण मन्त्र भक्षितो वा कल पानीय पातव्य वार ७ अभिमन्त्रय निर्विषो भवति । मन्त्र :- ॐ नमो रत्नत्रयाय अमले विमले स्वाहा । विधि - इस मन्त्र को १०८ बार पढता जाय और हाथ से झाडा देता जाय और पानी को १०८ बार मन्त्रित करके पिलाने से सर्प का जहर उतर जाता है । मन्त्र :- ह्रीं ह्रहः । विधि :- इस मन्त्र से झाडा देवे १०८ बार तो किसी के द्वारा खिलाया हुआ जहर दूर होता है । तथा क्षः इति स्मर्यते सर्पो न लगति । मन्त्र — ॐ कुरु कुल्ले मातंग सवराय शंखं वादय २ ह्रीं फुट् स्वाहा । विधि - बालु को २१ बार इस मन्त्र से मन्त्रित करके घर मे डालने से सर्प घर से भाग जाते है । विधि मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं कलि कुंड स्वामिने प्रति चक्र जये जये प्रजिते अपराजिते स्तंभे मोहे स्वाहा । मन्त्र विधि - कन्या कत्रित सूत्र को मनुष्य के बराबर लेकर १०८ बार मन्त्रित करे, फिर उस सूत्र का टुकड़ा करके खावे तो (बालका न भवति ) सन्तान नही होवे । G - वल्ब्यूक्ष्मव्यू ट्व्यू — इस मन्त्र को पान ऊपर हाथी के मद से अथवा सुगन्धित द्रव्य से लिखकर खिलावे तो वश होय । मन्त्र :- ॐ नमो ह्रां ह्री श्रीं चमुंड चंडालिनी श्रमुका मम नामेण श्रालिंगय
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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