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________________ लघुविद्यानुवाद १६३ स्त्रि भुवन त्रिपुर भैरवी तेन् सकीर्त्य से तत्र शृगार पीठे लसत् कु डलोल्का कलाया कुला प्रोल्लसती शिवार्क समास्कद्य चाद्र महामण्डल द्रावयन्ति पिवति सुधा कुल वधु व्रत परित्यज्य पर पुरुषमकुलीन मवलव्य सर्वस्व माक्रम्य विश्व परि भ्रम्य तेनैव स्यार्गेण निजकुल निवास समागत्य सन्तुष्य सीतितदाक पतिक प्रिय. क प्रभु कोस्तिते नैव जानी महे हे महे स्यानिरम से च कामेश्वरी काम काम गर्जा लये अनग कुसुमादिभि. सेविता पर्यट सि जाल पीठे तदनु चक्रेश्वरी परिजेता नटसि भगमालिनी पूर्णा गिरि गह्वरै नग्न कुसुमा वृता विलससि मदन शरमधु विकासित कदब विपिने त्रिपुर सु दरी सो घ्राणे नमस्ते ३ अरहते । इति त्रिपुर सुन्दरी चरण कि करोऽरीरचन् महा प्रणति दीपक त्रिपुर दडक दीपकः इम भजति भक्ति मान् पट्टत्तिय सुधी साधक सर्वाष्ट गुण सपदा भवति भाजन सर्वदा ॥१॥ इस त्रिपुर सुन्दरी शारदा दडक को जो कोई पढता है, सुनता बुद्धिमान तो सम्पूर्ण गुणरूपी सम्पदा को प्राप्त होता है। सम्पूर्ण दु खो को दूर करता है । कीर्ति की प्राप्ति होती है और सम्पूर्ण विद्यापो का स्वामी बनत ॥ इति शारदा दण्डक समाप्त. ।। मन्त्र :-संपत्ते सीह भएसंतं भरिण ऊरण धणुह चूलेरण किज्जइ तह कुंडलयं वहि एसे सयल संघस्स धणु हस्सरे हमष्येन कुरणइ कुणइ चलणंपि सीह संघाऊ मंतप हावेण फुडं सघस्स विरक्खरणं कुरणई मंत्रोयथा नंटायणु पुत्रा सायरि उपडि हास मोरो रक्खा कुकुर जिम पुछी उल्ल वेइ उर हइ पुछी पर हइ मुहि जाहि रे जाह अट्ठ संकला करि उरू बंधउ वाघ वाघिरणी मुह बंधाउ कलि व्याखि खिरणी की दुहाइ महादेव श्री ऋषभदेव की पूजा पाइटा लहि जइ आगल्ही वीर वदेहि । विधि :-धनुष लेकर डोरी चढाकर आवाज करे धनुष का फिर इस मन्त्र से सात बार मन्त्र पढ कर सात रेखा करे । मन्त्र के प्रभाव से व्याघ्र भी उस रेखा का उल्लघन नही कर सकता है। अनेन मन्त्रेण धणु ह अद्दणि ना कुडला कार सघात वाह्य रेखा सप्तक क्रियते मन्त्र प्रभावेन सिहो सघात मध्ये नायाति रेखा नोल्लघते।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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