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लघुविद्यानुवाद
सचयो गगन तल सचरोय वशश्छ त्ररुप सदा दृश्यते पार्श्व नाथे यस्य मधुर स्मीत ज्योतिषा पूर्ण हरिणाक लक्ष्मक्षरणादेदेव विक्षिप्य पे तस्य मुग्ध मुख पुडरी कस्य कविभिः कदा कोप माकेन कस्मै कथदीयता सस्फुट स्फटिक घटिताक्ष सूत्र नक्षत्र चय चक्र वर्ति पद विनोद सदर्शिताहनिशा समय चारे सुचारे महाज्ञान मय पुस्तक हस्तपद्म ऽत्र वामे दधत्वा भवत्पा स्फुट वाम मार्गस्य सर्वोत्तम त्वमुपदिश्य दिव्य मुख सौरभे योग पर्यक बद्धास ने सुवदने सुखदने सुहसने सुवसने सुरसने सुवचने सुजघने सुसने सुमदने सुचरणे सुशरणे सुकिरुणे सुकरणे जननि तुभ्य नम ऐ अ इ उ ऋ लृ इति लघु तथा तदनु दैर्येण पचैव योनि स्थिता वाग्भवे प्ररणव ॐ बिन्दु रू बिन्दु रू क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श प स हे ति सिद्ध रुद्रात्मिक काममृत कर किरण गण वर्षिणी मात्र कामुद्गिरतिव मन्ति रस तीस सती हसती सदा तत्र कमल भव भवन भूमौ भवति भय भेदिनि भवानि नद भजनी सुभुर्भव स्वर्भुवन भूति भव्ये सुहव्ये सुकव्वे सुक्त तितायेन सभाव्यसे तस्य जर्जरित जरसो विरजसो विपुत्री कृतार्द्धस्य सत्तर्क पद वाक्य मय सु शास्त्र शास्त्रार्थ सिद्धात सौरादि जैन पुराणेति हास स्मृति गारूड भूत तत्र शिरोदय ज्योतिषायुर्विधाना ख्य पाताल शास्त्रार्थ शस्त्रास मन्त्र शिक्षा दिक विविध विद्या कुल ललित पद गुरु परिपूर्ण रस लसित कान्ति सो दार भरिणति प्रगल्भार्थ प्रबन्ध साल कृता शेष भाषा नहा काव्य लीलोदय सिद्धि मुपयाति सद्यो बिकेबाद्भवे नैक के नैव वाग्देवी वागोश्वरो जायते किच कामा क्षरेण सक्त दुचारितेन तव साध को बाघ को भवतु भूवि सर्व शृगारिणा तन्नय न पथ पथि मतित नेत्र निलोत्पलत् झटिति सिद्ध गंधर्वगरण किनरी प्रवर विद्याधरी वासुरी मरी वाम ही नाथ ना गाग ना वा तदा ज्वलन मदन शरि भिकर सक्षोभित्ता विगलितेव दलि तेव छलिते व कवलितेव विलिखि 'तेव मुखितेव मुद्रितेव व पुषि सपद्य शक्ति वीजेषु सध्यायिना योगिना भोगिना रोगिणा वैनतेयाप्यते नाहि नातत् क्षणाद मृते मेघाप्यते दु सह विपारणा शशाक चूडाप्यते ध्यायते येन वीज त्रय सर्वदा तस्य नाम्नैवप श्रु पाशमल पजर त्रुटति रूपे तदाज्ञथा सिद्वयति गुणाष्टक भक्ति भाजा महा भैरवि । ऐ ॐ हू कवलित सकलत त्वात्मके परिणताया त्वयि तदाक परि शिष्य ते शिष्यते यदि तहित्वछक्ति हीनस्य तस्य कार्य क्रियाकारिता तदिति तस्मिन विधौ तदा तस्य कि नाम कि शर्म कि कर्म किं नर्म कि वर्म कि मर्म कामति' कागति कारति: कावृति का स्थिति पर्यप्यति यदि सर्व श्रन्यात भूमौ निजे स्थास मुन्मेप समय समासायू वालाग्र को शरूपापि गभि कृत शेष ससार वीजानु वध्नासि क त तदा स्वविकागीय से तदनुपरि जति कुटिला तेजो कुराजन निवामेति संस्तूय मे वद्ध सस्पष्ट रखा शिखावा ज्येष्ठेति सभाव्य में सैव गाठका कारिता मागता रोद्रि रोद्रिति विख्याय्यप्ने ताश्चवामादि कास्त त्क लारवीन गुणा सत्य त्रियाज्ञानमय वाद्या स्वरुपा मात्रामरस मधुमथनपुर वैरिगांवीज भाव भजत्य सृजत्य
सुख