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________________ preme AR1 Kaim.hindniaadmi परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज लघुविद्यानुवाद ग्रन्थ का सशोधन कार्य करते हए। इसी प्रकार हमारे पालोचको का भाव मात्र अपवाद अथवा निन्दा करना ही बना रहता है । वैसे मैने इस काल निकृष्ट और लोगो की परणति खराब देखकर जो भी अशुद्ध द्रव्य अभक्ष्य द्रव्य, मारण, उच्चाटन आदि क्रिया का जहाँ भी विवरण था अब इस सशोधित प्रति मे इस विवरण को निकाल दिय. गया है। ग्रथ मे मत्रो तथा यत्रो के सग्रह को कम नही किया गया है। क्योकि मत्र यत्रो के संग्रह को समाप्त करना उचित नहीं है । मात्र विधियॉ व तत्र निकाल दिये गये है । पूर्ण रूप से इन क्रियाओ को ग्रथ से निकालकर सशोधित कर दिया गया है। ग्रथ मे पहिले से भी ज्यादा लाभकारी सामग्री हो इसलिये इस ग्रथराज मे वीरनन्दि आचार्य कृत पद्मावती स्तोत्र व उस स्तोत्र पर लिखी हुयी आठ श्लोको पर वृत्याष्टक नाम की टीका श्रो पार्श्वमणि देव द्वारा रचित उसको भी बहुत शुद्धि पूर्वक हमने विमल भाषा टीका के नाम से कर प्रकाशन करवा दिया है । सभी यत्र, मत्र, विधि सहित है। श्लोक अर्थ प्रत्येक श्लोक की सस्कृत टीका ८ न तक, न २ की विधि मे श्लोक और प्रत्येक श्लोक की विधियाँ यत्र मत्र न ३ की श्लोक पढने मात्र से क्या फल होता है उसके भी कुछ यत्र मत्र अलग-अलग लिखे है, सो हमने सग्रहित कर दिये है। पद्मावती स्तोत्र सम्बन्धित जितने भी श्लोक है उनके सब मत्र यत्र साधन विधि आदि एक ही जगह पर साधक को उपलब्ध हो जायेगे । किसी प्रकार की कठिनाई नही उठानी पडेगी। इस कृति से जो भी श्रद्धावान श्रावक वर्ग साधना करना चाहते है
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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