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उनको प्रत्येक यत्र या मत्र मे व इनकी विधियो मे अच्छी सफलता प्राप्त होगी । यह कृति भी पूर्वाचार्य कृत है इस कृति मे भी ग्रशुद्ध पदार्थो का वर्णन उच्चाटन, स्तंभन, मारणानि क्रियाओ का बर्णन आचार्यो ने लिखा है सो हमने भी उनका अनुसरण करके लिख दिया है तो भी मेरा स्वतन्त्र ऐसा विचार है कि साधक को इन सब प्रयोगो को नही करना चाहिये करने से श्राघात प्रवश्य होगा दुर्गति का पात्र बनना पडेगा । इसी कृति मे भी एक जगह इस बात को श्राचार्यो ने लिखा है मारण उच्चारणादि क्रिया आत्मार्थी लोगो को कभी नही करना चाहिये । ये सब क्रिया तो शुद्र लोग करते है । अच्छे वर्ग के लोग ये सब क्रिया नही करते है । पाठको को और साधको को इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिये । मुझे श्रवश्य क्षमा करेंगे । साधक के भावनानुसार कर्म बाधना अथवा छोडना उसी की जवाबदारी है । लेखक की नही, आप यह कहो कि इस प्रकार की क्रिया को छोड देना था क्यो लिखा गया जिससे कोई उपयोग करे, ये तो कोई तुक नही है । प्राचार्यो ने लिखा, हमने लिखा, हम छोडने वाले है कौन ? हमे क्या अधिकार है जो हम आचार्यो की कृति को अस्तव्यस्त करे | हमारा कार्य मात्र जिसकी जो कृति है उसका अनुसरण करना । इस प्रकार मुझे अशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि सभी इस ग्रथ के माध्यम से और भी अधिक लाभ उठा सकेंगे ।
मेरे व इस ग्रंथ के जो भी शुभ चितक है उनको मेरा बहुत-बहुत ग्राशीर्वाद है । आप लोगो के सभी के सदप्रयासो से यह ग्रथ पुनः प्रकाशित हो रहा है ।
इस ग्रंथ के लिये परम दयालु वात्सल्य मूर्ति प्राचार्य विमलसागरजी महाराज का पूर्ण आशीर्वाद रहा है और अब भी आशीर्वाद है ।
श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रंथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक श्री शान्ति कुमारजी गगवाल व उनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमारजी गगवाल ने इस ग्रथ के पुन प्रकाशन के लिये बहुत ही कठिन परिश्रम किया है। उनको हम बहुत-बहुत श्राशीर्वाद देते है || श्री शान्ति कुमारजी सच्चे पुरुषार्थी है | इन्ही के कारण यह ग्रथमाला लोकप्रिय होती जा रही है और इन्ही के कठिन परिश्रम से महत्वपूर्ण थो (१५) का प्रकाशन हो सका है । ग्रथमाला समिति के अन्य सहयोगियो को भी मेरा आशीर्वाद है । इस ग्रन्थ सशोधन कार्य मे हमारे सधस्थ श्री १०५ गणिनी आर्यिका कमल श्री माताजी का पूण सहयोग रहा है । अपने अध्ययन कार्य के साथ-साथ ज्ञान ध्यान मे रत रहती हुए भी मेरे इस कार्य हाथ बटाया है । इनको भी मेरा बहुत - बहुत आशीर्वाद है ।
ग्रन्थ प्रकाशन खर्च मे जैन समाज वडौत के दातारो का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है अन्य दातारो ने भी सहयोग किया है । मेरा सभी को बहुत-बहुत आशीर्वाद है । श्रीमान् गुरुभक्त प्रेमचन्दी जी जैन (मित्तल) ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन कार्य को सम्पन्न कराने मे सहयोग प्रदान किया है इनको भी मेरा बहुत - बहुत आर्शीवाद है ।
गणधराचार्य कुन्थुसागर