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________________ लघुविद्यानुवाद १०१ विधि :-स्नात्र काराप्य अक्षते स्ताम्यते गुगुल दीयते तृतीय ज्वर नाश्यति । मन्त्र -जदुहुल त्रशनि वेसिय ॐ ऊ उप्पाइया सिरत्ति जउ हरण वंति कलि काउ किउचत्तिन दुक्कातत्ति कालु काले महाकाले। विधि :-एक श्वास मे सात बार अथवा तीन श्वास मे इक्कीस बार हाथ पर सिर धरे तो सिर का दर्द शात होता है। मन्त्र -ॐ नमो सुग्रीव सया कल विकुल जाटयागरण गधर्व जरकर कस बेताल भूत प्रेत पिशाच डाइरिण सिर सूल पेट सूल आकाश पाताल कन्यका । ॐ नमो पार्श्वनाथाय जस्सेय चक्क फूरतगच्छइ तेण चक्केण जट्ठ दृट्ठ विस चउरासी वायाउछत्तीस लूताय सत्तावीस अध गडाइ अट्ठावीस फुल्लियाऊ छिदी २ भिदि २ सुदरिसरण चक्केण चन्द्र हास खङ्गन इन्द्र वज्रण हु फट् स्वाहा । विधि :--दर्भेण गडवाउ उजितो वार २ प्रभाते कृष्ण चनकान् भक्षयित्वा मुष्टि प्रमाण कुषुक जटा षष्टिक तदुलकेन पिष्टाय पिवति तस्य अभारि निवर्तते । मन्त्र :-सीहुया कारणी पहुया धालिरेट पजारे जरालं किली जइ हणुया नाउ हर संगर की अगन्या श्री महादेव भराडा की अगन्या देव गुरु की अगन्या जरो जरालंकि । विधि :-डोरा को दश वड करके उसमे दस गाठ लगावे, मन्त्र १०८ बार पढे । मन्त्र पढता जावे और डोरे मे गाठ लगाता जावे। उस डोरे को गले मे या हाथ मे बाधने से वेला ज्वर, एकातर ज्वर, द्वयातर ज्वर, त्रयतर ज्वर का नाश होता है। इसी प्रकार गुगुल को भी मन्त्रित कर जलाने से सर्व ज्वार का नाश होता है । मन्त्र :-ॐ सिद्धि ॐ शंकरू महादेव देहि सिद्ध तेल । विधि -इस मन्त्र से काच तेल अभिमन्त्रित (नश्यया) करके सू घे तो सर्व प्रकार के सिर __ दर्द नष्ट होते है और इस तेल से गुमडा, फोडा, घाव, अग्निदाह इत्यादिक अच्छे होते है। मन्त्र -ॐ सद्यवाम अघोर ईसान तत् वक्तः । विधि -इस मन्त्र को एक श्वास मे ३ बार जपने से माथे का दर्द शात होता है और विच्छू का जहर उतर जाता है। विशेष -अनेननि श्वासेन पार मेक विधिना, एक बार त्रय जपित्त शिरोत्ति वृश्चिक मुतरति कालू वरी चर्ण ग०८ पल द्वय क्काथपलिका मध्ये अवा घाडा वावनी बीच चर्ण व्यगुली प्रक्षिप्त पीते सरिषप तेले अभ्यगेद भत श्वेत कर्क टीनि वर्त यति, टकण
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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