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________________ १०० मन्त्र विधि - विसत्रिभुवनि हि नास्ति विसु । मन्त्र लघुविद्यानुवाद - ॐ खत्रिउ काला कुट विस वन्नउ सूद्रिका सद्ध लिउ वन्नउ वाय ससउ हरियालउ चन्नउ चारि विस चारि उवन्नउ अट्ठारह जाति फोडी २ जानिविसी होई शनैश्वर वारिउ जाय उरेविस खपन का जाती पीगला पूत माह मासि ग्रधारी चउदसिरे वति नक्षत्रे घाउ जन्म भयउ - मू टिठ हयउ दीट्ठि तोलियउ खाउ प्रत्तोलियउ खाउ पल खाउ पलसउ खाउ भार खाउ भारसउ खाउ प्रदीट्ठउ खाउ हउ खाउ तुहुन खाइ कउणुखाइ श्री सरडा मडैवु खाउ जरे विस फूटि होइ माटी त्रेत्रीस कोटि देवता खाधउ वाटि तिहु त्रिभुवन शिव नास्ति विसु ठ ठ श्री नील कठ की आज्ञा सोपाराउल की आज्ञा शिव शक्ति नास्ति वि सुजरे विस ज ज . । विधि - ॐ नमो पार्स यक्षाय भस्म जटा सहिताय वग्घ न आरोहणाय चलु - २ रे चालु २ रे डाकिनी शाकिनी भूत प्रेत पिशाच छल छिद्र, जाणु विनाणु गुप्तु प्रकटु चउरासी यत्र चूरि २ चउरासी मन्त्र चूरि २ पराई मुद्रा चूरि २ आापरणी मुद्रा प्रकट करि पाराइ भाँजि घालि वा श्री पसदेव तरणी आज्ञा वाधि भीड आक्रसि सर्वइ दोष जिकवगड प्राथि प्रकटति गुप्त Ras बाघ आणिघालि महारा पाग हेट्ठि ३ दीहउ रीस नीरसउ अद वद व पुरी सी दग मग चरित उट्ठियद विखरणादिसि हिम देव किलि २ शब्दइ जकार रूपिहि प्रदवद वक्रइ छिदिमा सिरि छिदि अहमद साविरिण छिदि कवाडत्ती छिदि २ ही हउरीस निरीसउ परपोरिसि दिवाकरू भुजसि मुध सामिते बार नइ पसता कपइ व हुव वसायर ते कचापरिहरिगय की पाती चग भगउडी करमोडउ डाइरिण फोडिसि होरी सरणत विसनासरण हरि छ सुदरि सरिण । ॐ नमो प्ररिमत्र राजाय कुछित विटॅ बनाय अनत शक्ति सहिताय श्रष्ट कुल पर्वत वाँधि आढार भाव वनस्पति वाधि नव कुल नाग बाँधि सात समुद्र बाधि ट्ठासी सहस्त्र रिपि बाधि नवानवइ कोडियक्ष बाधि विष्णु रुद्र बाधि नव कोटि देव वाँधि छप्पन्न कोटि चाउडा बाँधि अट्ठारह पवरिण बाधि छतिस राजकुली बाधि मालिगि afa कल्ला लगि बाधि तेलणी बाधि ब्राह्माणि बाँधि सर्वइ दोष बाधि जिकवरण दोप आथि गुप्त प्रकटति सर्व दोष बाधि भीडि ग्राक्रसि श्रारिण घालि महारा पाग हेट्ठि वडइ वेगि वायु २ अरि मन्त्र य वायण की शकि बाधि २ भिडि २ आक्रसि २ वड वेगि वाधि २ । - इस मन्त्र से पानी मन्त्रित करके देने से अथवा झाडा देने से सर्व प्रकार के दोप चाहे व्यतर डाकिनी शाकिनी राक्षस भूत प्रेतादि कृत हो चाहे दृष्टि दोष हो चाहे परकृत यत्र मन्त्रादि हो सर्व प्रकार के दोप इस महा मन्त्र मेशात होते है । मान पहिरणउं हुंकारइ प्रावइ जकारइ मन्त्र - आय मानंन तेज श्राइत जाइजः ३ ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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