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________________ २८ ] लब्धिसार [ प्र. स. चूलिक "प्रथमोपशमसम्यक्त्व चूलिका" लब्बिसार ग्रन्थ में १०६ गाथानों द्वारा प्रथमोपशम सम्यक्त्व नामक प्रथम अधिकार समाप्त हो चुका है, किन्तु कषायपाहुड़ ग्रन्थ में प्रथमोपशम सम्यक्त्व के. सम्बन्ध में निम्न गाथाओं में कुछ विशेष वर्णन किया गया है अतः उसे उपयोगी जानकर टोका सहित यहां पर प्रथमोपशमसम्यक्त्व चूलिका के रूप में उद्ध त किया गया है सवेहि द्विविविसेसेहि उवसंता होंति तिपिस कम्मंसा । एक्कम्हि य अणुभागे रिणयमा सम्बे दिदि विसेता ॥१॥ प्रर्थ-दर्शनमोहनीय कर्म की तीनों प्रकृतियां सभी स्थिति विशेषों के साथ उपशान्त रहती हैं तथा सभी स्थिति विशेष नियमसे एक अनुभागमें अवस्थित रहते हैं। विशेषार्थ--यह कषायपाहुड़ को १०० वी गाथा है। इस गाथासूत्र में 'तिपिण कम्मंसा' ऐसा कहने पर मिथ्यात्न, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि दर्शनमोह की उपशामना का प्रकरण है। ये तीनों ही कर्मप्रकृतियां सभी स्थिति विशेषों के साथ उपशान्त रहती हैं, उनकी एक भी स्थिति अनुपशान्त नहीं होती। अतः मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व को जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति तक इन सब स्थिति विशेषों में स्थित सब परमाण उपशान्त होते हैं यह सिद्ध हुआ । इसप्रकार उपशान्त हुए उन सब स्थिति विशेषों का अनुभाग एक प्रकार का ही है । 'एककम्हि य अणुभागे' एक ही अनुभाग विशेष में इन तीनों कर्म प्रकृतियों के सब स्थिति विशेष होते हैं। अन्तरायाम के बाहर अनन्तरवर्ती जघन्य स्थिति विशेष में जो अनुभाग है वही उससे उपरिम उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त समस्त स्थिति विशेषों में होता है, अन्य नहीं होता । मिथ्यात्त्र का तो घात करने से शेष रहा सर्वघाति द्विस्थानीय अनुभाग सब स्थिति विशेषों में अवस्थित रूप से स्थित रहता है । इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्व का भी जानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व के अनुभाग से यह अनन्तगुणा हीन होता है । सम्यक्त्व का अनुभाग तो उससे भी अनन्तगुणा हीन होता है, जो देशघाति द्विस्थानीयरूप होकर दारु समान अनुभाग के अनन्तवेंभागरूप से अवस्थित उत्कृष्ट स्वरूप एक प्रकार का सर्वत्र होता है । १. ज.ध.पु १२ पृ. ३०६-१०। ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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