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________________ २३६ शब्द पृष्ठ परिभाषा समूह का ही नाम संग्रह कृष्टि है। तथा संग्रह कृष्टि की ये अवान्तर कृष्टियां हो "भन्तर कृष्टि" कहलाती हैं । (अवयवकृष्टि -अन्तरकृष्टि क० पा० ८०६) मन्तरित प्रतीत, अनागत काल सम्बन्धी अन्तरित कहलाता है। जैसे राम, रावण प्रादि । प्राप्त मीमांसा. वृ० ५ तथा न्याय दी० पृ० ४१ । परन्तु पंचाव्यायी में ऐसे कहा है-मन्तरिता यथा द्वीपसरिनाथनमाधिपाः ॥२/४८४ अर्थात् द्वीप, समुद्र, पर्वत प्रादिक पदार्थ अन्तरित हैं; क्योंकि इनके बीच में बहुत सी चीजें या गई हैं। इसलिये ये दिख नहीं सकते। मिदिवस दिवस से कुछ कम को अन्तर्दिवस (अन्तःदिवस) कहते हैं । अन्तःकोटा मन्तः अर्थात अन्दर । अत: ला विरत मा दो कुल का हो नहीं अन्त: कोटि सागर संज्ञा होती है । इसी तरह कोड़ा कोड़ी से नीचे तथा कोड़ी से ऊपर को अन्तः कोटा कोटी कहते हैं । कहा भी है-"अन्तः कोड़ा कोड़ी सागर" ऐसा कहने पर एफ कोड़ा कोड़ी सागरोपमको संख्यात कोटियों से खण्डित करने पर जो एक खण्ड होता है वह मन्तः कोड़ा कोड़ी सागर का प्रथं ग्रहण करना चाहिये । (घवल ६/ १७४ चरम पेरा) अपवर्तनोदनिकरण ६४ प्रबकर्णकरण, प्रादौलकरण, अपवर्तनोद्वर्तनकरण; ये तीनों एकार्थक नाम हैं । उनमें से अश्वकर्णकरण ऐसा कहने पर उसका अर्थ होता है अपच का कर्ण प्रश्व ." कर्ण । प्रश्वकर्ण के समान जो करण यह प्रश्वकर्णकरण है। जिस प्रकार अश्व % मूल कथन दिया जाता है ताकि अन्तर सुस्पष्ट हो जायगा(i) अन्तरिताः कालविप्रकृष्टाः अर्था: (i) मन्तरिता यथा द्वीपसरिनाथनगाधिपाः मा० मी वृ. ५ लाटीसंहिता सर्ग ४ श्लोक पूर्वाधं पृ. ४१ (i) अन्तरिता: कालनिप्रकृष्टा रामादयः (ii)अंतरिता यथा द्वीपसरिनाथनगाधिपाः ___न्यायदीपिका पृ० ४१ पंचाध्यायी २/४६४ राजमल्ल त अनागतकाल सम्बन्धी अंतरित कहिये। पं० टोडरमलजी नोट-यहां उक्त सन्यों में काल से अंतरित नोट-ऊपर दोनों ग्रन्थों में क्षेत्र से अंतरित (व्यवहित)अथवा विप्रकृष्ट (दूर) पहित ( यानी विप्रकृष्ट ) को पदार्थ को "अन्तरित" कहा है। "अन्तरित" कहा है ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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