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________________ २२५ पुवेदं पृष्ठ पंक्ति २१४ १६ प्रदेशाग्र देता है । यहां से प्रदेशाग्र देता है। पुरातन गुरपरिणशोर्ष से अनन्तर उपरिम स्थिति में असंख्यातगुणा हीन देता है। उसके ऊपर सर्वत्र विशेषहीन-विशेषहीन प्रदेशाम देता है। यहां से परिपूर्ण सपरिपूर्ण निर्जरा जिसका निजरा ही जिसका २२०८ एकद्रव्य या पर्याय को एक द्रव्य या गुण-पर्याय को २२१ २१ एक तथा एक शब्द के एक योग तथा एक शन्द के २२२ २० वीचार हो बह एकत्वविर्तक वीचार हो वह पृथक्त्ववितकवीचार नामक शुक्लध्यान है। जिस ध्यान में प्रथ; व्यंजन व योग की संक्रान्ति न हो, वह एकत्ववितर्फ २२३ ९ परमात्मव्यानं संगच्छते परमात्मध्यानं न संगच्छते । जिरण-साहुगुणुस्कित्ताए जिरण-साहुगुण विकत्तण २२९ ८ सपर्ट घतघट २२९ १२ बाह घी फा घट कहलाता है। "घी का घड़ा मायो"; ऐसा कहा जाता है। वैसे ही पुवेद २३२ १० खीरणा भीया २३२ ११-१२ अर्थ-स्थानगृद्धि.................... प्रर्थ-मध्यम ८ कषायों के क्षय करने के अनन्तर ............करके नाश करता है स्त्यानदिकम, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला; इन तीन दर्शनावरण की प्रकृतियों को, तथा नरकगति और तियंत्रगति सम्बन्धी नामकर्म की १३ प्रकृतियों को संक्रम मादि करते समय (अर्थाद सर्वसंक्रम मावि में पानी संक्रम काण्डकघात प्रादि करके) क्षीण करता है २३३ २५ गा० १३६, १३०-१३९ मा० ३-४-५ · २३४ २३ अहिय अहियो २३४ २४ बोषब्दो बोधब्बा २३४ २४ अणुभागे २३५ ३ मणुभागो प्रणुभागे २३५ ८ अनुभागविषयक अनुभाग को अपेक्षा साम्प्रतिक बन्ध से साम्प्रतिक उदय अनन्तगुणा होता है । इसके अनन्तरकाल में होने वाले उदय से २३६ २ पश्चातानुपूर्वी पश्चादानुपूर्वी २३६ १३ सेसे सेस २३६ १८-१९ और तीन घातिया कमों का पृथक्त्व अणुभागो
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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