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________________ पृष्ठ पंक्ति ३७ ११ अशुद्ध संक्रमण होता है । इसप्रकार संक्रमण होता है। ऐसे ही द्वितीयकाण्डम का संक्रमण होता है । ऐसे क्रम से पृथक्त्व स्थितिकाण्डक के द्वारा ८ कषाय के द्रव्य का पर प्रकृतिरूप संक्रमण होता है । इसप्रकार प्रथम काण्डकपाल होता है। ऐसे चख ३८ ७८ ४२ २२ प्रथमकाण्डकघात होकर चक्डू किन्तु स्थितिबन्ध पल्योपम के प्रसंख्यात माग प्रमाण ही होता है । इसप्रकार अनुभाग स्तोक होने से यो कसायारणं उपरितनवर्ती अपकषित द्रव्य को निषिद्ध है। परप्रकृति समस्थितिसंक्रम प्रथमस्थिति में अपकर्षण पौर ४३ १७ ४५ २४ ४६ २४ २५ प्रसंख्यातवें भाग को इति पाठो । "माउत्तकरण" इति पाठो सप उपयुक्तो प्रतिभाति । (६) नपुंसकवेदता त्रम हो जाता है। इति पाठो प्रतिभाति । भेवरूप लिये स्थिति होता है। अनुभाग स्तोक व अधिक होने से गोकसायाणं उपरितन उत्कर्षित द्रव्य को निषिद्ध है । परप्रकृतिसंक्रम प्रथम स्थिति में अपकर्षण संक्रमण द्वारा देता है। उदय को प्राप्त संज्वलनों की प्रथम स्थिति में अपकर्षण और संख्यातवें भाग को इति पाठः। "माउत्तकरण" इति पाठः, सच उपयुक्तः प्रतिभाति । नपुसकवेदका क्षय हो जाता है। इति पाठः प्रतिभाति । भेदरूप लिये मन्य स्थिति होता है ।१ इसी क्रम से प्रर्थात् प्रतिसमय मनन्त गुरिणत हीन क्रम से अप्रशस्त प्रकृतियों के अनुभाष का बन्ध भी होता है। वहीं बहों विवक्षित समय से करनी प्राढते ५१ २३ ५२ ५६ २२ २ ५६ ७ ५६ . ५६ ११ ५८ ११ वही वही विवक्षित समय में करना माडत्ते
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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