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________________ शुद्धि-पत्र क्षपणासार पृष्ठ पंक्ति १ ११ प्रशुद्ध समरणाए अमख्यात वां भाग मात्र चतुर्थानिक देशामर्सक दुम्बर हो जाती है। पां पर . संक्रामण कमों का प्रनुभागकाण्डक घात जवाए सत्पातवा भाग मात्र पत:स्थानिक दशामर्शक स्वर ही जारी है। दिनका उदय प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक पाया जाता है। यहाँ पर रांत्रमा कमों का स्थितिघात होने पर स्थिति स्थान कौन सा रह जाता है अर्थात् स्थितिकाण्डक होने पर कितनी स्थिति शेष रह जाती है ? भनुभाग में प्रदर्तमान को का अनुभागकाण्डकघात पल्य के संस्थातवें भाग अनन्तर समय प्रोब्बट्टा १७वें निषेक वक पत्य के प्रसंस्पातवें भाग अन्तरसमय मोबट्टणा १वें निषेक तक १४ २२ ६६७ अपकषित प्रदेशाग्र का दूसरे संक्रमण तथा उदीरणा के लिये जाते हैं। कुछ का अपकर्षण (५) उत्कर्षण सम्बन्धी पणियट्टिस्स ठिदिखंजय १८ १७७ अपकषित प्रदेशाग्न दूसरे . संक्रमण के लिये जाते हैं, अपकर्षण (५) उत्कर्ष सम्बन्धी परिणयट्टम्स हिदिखंडपं जबत्तक हो जाता उससे असंख्यात गुणा कहते हैं और वहीं कहेंगे संपात गुणा है । पुन: ३ २१ २१ हुमा है प्रतः संख्यात गुणा कहना है या बहाँ कहना चाहिये असंख्यात गुपा है । पुनः ३५ १३
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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