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________________ [३०६ गाथा ३८१-८३) क्षपणासार चडतदियभवरबंधं पडणामागोदभवरठिदिबंधो। पडतदियस्स य प्रवरं तिगिण पदा होंति भहियकमा ॥३८१॥ अर्थः-चढ़नेवाले के तीसरे ( वेदनीय ) कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है (६०)। गिरनेवालेके नाम-गोत्रकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है (६१)। गिरनेवालेके (वेदनीय) तीसरे कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है (६२) । ये तीनों पद अधिकक्रम वाले हैं। . विशेषार्थ:- उससे चढ़नेवालेके वेदनीयकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है, क्योंकि यह २४ मुहर्तमात्र है (६०)। उससे गिरनेवालेके नाम-गोत्रका जधन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है, क्योंकि ३२ मुहर्तमात्र है (६१)। उनसे गिरने बालेके वेदनीयकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है, क्योंकि यह ४८ मुहर्तमात्र है (६२) । इन तीनों पदोंमें से प्रत्येक पद पूर्व पदसे विशेष अधिक है।' षडमायमाणकोहो मासादीदुगुण अवरठिदिबंधों । पडणे ताणं दुगुणं सोलसवस्ताणि चडणपुरिसस्स ॥३८२॥ पडणस्स तस्स दुगुणं संजलणाणं तु तत्थ दुट्ठाणे । बत्तीसं चउसट्ठी वस्सपमाणेण ठिदिबंधो ॥३८३॥ अर्थः-चढ़नेवालेके माया, मान व क्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध एक मासको प्रादिकरके दुगुणा-दुगुणा है (६३.६४-६५) । गिरते हुए के उनका जघन्य स्थितिबन्ध द्विगुणा है (६६-६७-६८) । चढ़नेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध सोलहवर्ष है (६६) । गिरनेवालेके पुरुषवेदका जघन्यस्थितिबन्ध द्विगुणा है (७०) । पुरुषवेदके दोनों स्थानोंपर संज्वलनकषायोंका स्थितिवन्ध ३२ व ६४ वर्षप्रमाण है (७१-७२) । विशेषार्थ-चढ़नेवालेके मायाका जघन्य स्थितिबंध १ मासप्रमाण है जो पूर्वमें कहे गए वेदनीयके जघन्य स्थितिबन्धसे संख्यातगुणा है। गिरनेवाले के मायाका जघन्य स्थितिबन्ध और चढ़नेवालेके मानका जघन्य स्थितिबन्ध द्विगुणा अर्थात् दो मास है । गिरनेवालेके मानका जघन्य स्थितिबन्ध और चढ़नेवालेके क्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध १, जयधवल मूल पृ० १९३४ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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