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________________ गाथा ३३७-३३८ ] क्षपणासार [ २७७ नीचे उतरकर जब पत्य के प्रसंख्यातवें भाग स्थितिबन्ध नहीं होता अर्थात् जबतक संख्यातहजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तबतक एक स्थिति से दूसरा स्थितिबन्ध विशेष अविक होता है' । विशेषार्थः - पूर्वोक्त स्थितिबन्धोंके द्वारा क्रमकरणका विनाश हो जाने के पश्चात् स्थितिबन्धों में जो नाम गोत्र कर्मकी स्थितिसे ज्ञानावरणादिकी स्थिति विशेष अधिक बंधती है वहां पर विशेष अधिक प्रमाण नाम - गोत्रकी स्थितिका द्वितीयभाग है, क्योंकि नाम गोत्रको उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागर है और ज्ञानावरणादिकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ा कोड़ीसागर है। ज्ञानावरणादिकी स्थितिसे मोहनीयको स्थिति विशेष अधिक बंधती है वहां विशेष अधिकका प्रमाण ज्ञानावरणादिकी स्थिति का तृतीयभाग है, क्योंकि उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ोसागर व चालीस कोड़ाकोड़ी सागर में यह अनुपात है । नीचे उतरते-उतरते श्रेणिसे गिरनेवाले के जबतक स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्ष रहता है प्रसंख्यातवर्ष नहीं होता अर्थात् पल्यका असंख्यातवां भाग नहीं होता तब तक पूर्ण स्थितिबन्धसे अगला स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है गुणाकाररूप नहीं होता । जत्तोपाये होदि ह असंखवरसप्पमाण ठिदिबंधो । तत्तोपाये भरणं ठिदिबंध मसंखगुण्यिकमं ॥ ३३७ ॥ एवं पल्लासंां संां भागं च होई बंधेण । तत्तोपाये भगां ठिदिबंधो संखगुणियकमं ॥ ३३८ ॥ अर्थ :- जिस स्थल पर स्थितिबन्ध असंख्यातवर्षप्रमाण होता है उस स्थलसे लेकर अन्य स्थितिबंध असंख्यातगुरिंगत क्रमसे होते हैं । इसकमसे पल्य के असंख्यातवें भाग व पल्यके संख्यातवें भाग स्थितिबन्ध होता है । उस स्थलके ( पल्य के संख्यातवें भाग ) पश्चात् अन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणित क्रमसे होते हैं । ९. तदो एव विहट्ठदिबंधपरावन्तारगण जहाकमं कारण हेट्ठा श्रोदरमारणस्स पुगो वि संखेज्जसहस्सतारिट्ठदिबंध भुस्सरणारण एदेव कमेण दिव्वाणि जाव सध्व पच्छिमो पलिदो प्रसंखभागजो ट्ठदि बंधोति । ( ० ० मूल पृ० १६१० १ १-२ )
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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