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________________ २६६ ] क्षपरणा सार [ गाथा ३२७ होता है । विशेषता - ज्ञानावरण, दर्शनावरण श्रौर अन्तराय इन तीन घातिया कर्मों का स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षमात्र होता है । मोहनीयका उससे संख्यातगुणाहीन तत्प्रायोग्य संख्यातहजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । उपशमश्रेणि चढ़नेवाले के सात नोकषायके उपशम करनेके काल में संख्यातवां भाग व्यतीत हो जानेपर ( जिस स्थानपर ) नाम, गोत्र, वेदनीयका स्थितिबन्ध संख्यातवर्षप्रमाण होता था, उतरने वाले के पुरुषवेद अनुपशान्त हो जानेपर और जबतक स्त्रीवेद उपशान्त रहता है तबतक इस मध्यवर्ती कालके संख्यात बहुभाग बीत जानेपर ( चढ़ने वाले के उस स्थानके नहीं प्राप्त हुए ही इसके ) नाम, गोत्र और वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध संख्यातवर्षको उल्लंघकर प्रसंख्यात वर्षका होने लगता है । चढ़नेवालेके स्थितिबन्ध संख्यातवर्षका होता था अतः उतरनेवाले दोगुणा स्थितिबन्ध होना चाहिए ऐसी ग्राशंका नहीं करना चाहिए । गिरनेवाले के संक्लेश विशेष के कारण श्रसंख्यातवर्षका स्थितिबन्ध हो जाता है। बीसिय- नाम, गोत्रका पत्यके असंख्यातवेंभाग प्रमाण स्थितिबन्ध होता है तो तोसिय प्रघातिकर्मवेदनीयका कितना स्थितिबन्ध होगा ? इसप्रकार त्रैराशिक करनेसे वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध पल्यके असंख्यातवें भागका डेढ़ गुणा होगा । उससमय स्थितिबन्धका अल्पबहुत्व इसप्रकार होगा मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प है। तीन घातियाकर्मीका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है, क्योंकि इनका स्थितिबन्ध उतरनेवाले जीवके सूक्ष्मसाम्पराय नामक १० गुणस्थान के प्रथमसमय में प्रारम्भ हो गया था और मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध बादरलोभ अर्थात् हवें गुणस्थान में प्रारम्भ हुआ है । नाम गोत्रका स्थितिबन्ध असंख्यात गुणा है और वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। अधिकका प्रमाण द्विभाग है' | आगे स्त्रीवेदके उपशमके विनाशकी प्ररूपणा दो गाथाओं में करते हैं— थी भवसमे पढमे वीसकसायाण होदि गुणसेडी । संडुवसमोति मक्के संखाभागेषु सीदेषु ॥ ३२७॥ वादितियाणं शियमा असंखस्तं तु होदि ठिदिबंधो । १. ज. ध. मूल पू. १९०३ - १९०४; क. पा. चू- सूत्र ४६१-४६६ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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