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________________ गाथा ३२१ ] क्षपणासार [२६५ एकबार असंख्यातगुणाहीन निक्षिप्त करता है। उसमे आगे अन्तर सम्बन्धी अन्तिम स्थितिके प्राप्त होनेतक विशेषहीन क्रमसे द्रव्यका निक्षेप करता है । उससे आगे द्वितीय स्थितिके आदि निषेक में असंख्यातगुणेहीन द्रव्यका निक्षेप करता है। उसके आगे तब तक सर्वत्र विशेषहीन क्रमसे द्रव्य देता है जबतक कि अपनी-अपनी प्रतिस्थापनाको प्राप्त हो जावे। इसप्रकार शेष कषायोंके अन्तरको पूरा करता है उनके द्रव्यका उदयावलि के बाहर निक्षेप करता है । इतना विशेष है । सात नोकषाय,स्त्रीवेद और नपुसकवेदके अंतरको भी इसी विधानसे यथा अव- . सर पूर्ण करता है। क्रोध उदयके प्रथमसमयमें बारह कषायों के द्रव्यको तत्काल बध्यमान संज्वलनक्रोधादि चारकषायोंमें आनुपूर्वी क्रमरहित जहां-तहां संक्रमित करता रहता है। ( जयधवल मूल पृ० १६०१-१६०२ ) में विशीहीन कम द्रव्या असरन्यातकानि 1. अन्तरायाम में विशेषहीन क्रम से द्रव्य विराटोन अमश्यत्तगुदाहीन गुवाशी शीष गुगणी आयाम _____/उयस्थिति
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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