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________________ २६२] . क्षपणासार [ गाथा ३१८ उदयावलीके प्रथम समयसे लेकर और उदयरहित अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यानरूप मायाके द्रव्यको उदयावलीसे बाहर' प्रथम समयसे लेकर आवलि अधिक मायावेदककालप्रमाण अवस्थित पायामवाली गुणश्रेणी करता है। उदयरहित तीनप्रकारके लोभके भी द्वितीय सम्बन्धी द्रव्यको अपकर्षित करके उदयावलिसे बाहरसाधिक मायावेदक कालप्रमाण अवस्थित पायामवाली गुणश्रेरिण करता है। यहां ज्ञातव्य है कि तीन प्रकारके लोभ व तीनप्रकारको मायाका गुणणि निक्षेप तुल्य और अवस्थित है। गलितावशेष नहीं है । अवशिष्ट छह कर्मोकी पूर्वोक्त अपूर्वकरण व अनिवृत्तिकरण कालसे विशेष अधिक पायामवाली गुणवरिण करता है । तथा उसी मायावेदककालके प्रथमसमय में तीन प्रकारकै लोभ व दो प्रकारकी माया सम्बन्धी द्रव्यको संज्वलन मायामें संक्रमित करता है वसे ही तीनप्रकारको माया ब दोप्रकारका लोभ लोभसंज्वलनमें संक्रमण करता हैं। क्योंकि यहां संज्वलनलोभ एवं संज्वलनमायाका ही बन्ध है और बन्धमें ही संक्रमण होता है। आनुपूर्वी संक्रमणके अभावसे इसप्रकारका संक्रमण संभव है ।' मोदरमायापढमे मायालोहे दुमासठिदिबंधो। छगह पुण वस्साणं संखेजसहस्सवस्साणि ॥३१॥ अर्थ:-उतरने वालेके मायावेदककालके प्रथमसमयमें संज्वलनमाया व लोभ का दोमासप्रमाण तथा शेष छहकर्मोका संख्यातहजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है । विशेषार्थः-उपशम श्रेणि चढ़नेवाला मायाबेदक कालके चरमसमयमें संज्वलनमाया व लोभका स्थितिवन्ध एक मासप्रमाण होता था अब उतरनेवालेके मायावेदककालके प्रथमसमयमें उससे दो गुणा अर्थात् दो मासप्रमाण होता है, क्योंकि चढ़ने वालोंके परिणामोंसे उतरने वालोंके परिणाम कम विशुद्ध होते हैं। इसीप्रकार गिरनेरूप परिणामोंकी विशेषतासे शेष ( ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, वेदनीय, नाम व गोत्र) छह कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातहजारवर्ष प्रमाण होता है । उपशमश्रेणी चढ़ने वालोंके प्रत्येक स्थितिबन्ध संख्यातगुणे हीन क्रमसे होता था, किन्तु उतरने १. कारण यह कि उन नहीं वेदो जाती हुई प्रकृतियोंका, उदयावली के भीतर ( प्रदेशनिषेकोका) असम्भवपना है। जयधबल १८६८ २. जयधबल मूल पृ० १८६८ । ३. जयधवल मूल पृ० १८६८-६० ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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