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'अह खवरणाहियार --चूलिया दर्शनमोह और चारित्रमोह कर्मप्रकृतियोंकी क्षपणाविधि पूर्व में कहो मई उसका उपसंहार करते हुए आगे ११ गाथाओंमें चूलिकारूप व्याख्यान किया जाता है--
प्रण मिच्छ मिस्स सम्म अटुणव॒सिस्थिवेदछक्कं च । पुवेद च खवेदि हु कोहादीए च संजलणे ॥१॥
अर्थ-अनन्तानुबन्धी, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, पाठकषाय, तपुसकवेद, स्त्रीवेद, छह तोकषाय, पुरुषवेद और तत्पश्चात् क्रोधादि चार सज्वलवकषायका क्षय करता है ।
विशेषार्थ-'अण' अर्थात् चार अनन्तानुबन्धी कषायका विसंयोजन क्रियाके द्वारा सर्वप्रथम नाश करता है । "मिच्छ' दर्शनमोहको क्षपणाके के लिए आरुढ़ हुआ पूर्व में मिथ्यात्वका क्षय करता है । "मिस्स उसके पश्चात् सम्यग्मिध्यात्वका क्षय करता है। 'सम्म' उसके पश्चात् सम्यक्त्व प्रकृतिका क्षय करके क्षायिकसम्यग्दृष्टि हो जाता है। 'प्र' अपने योग्यगुणस्थानमें सप्त प्रकृतियोंका क्षय करके पश्चात् क्षपकश्रेणी पर धारूढ़ होता हुआ अनिवृत्तिकरणगुणस्थान में अन्तरकरणसे पूर्व पाठ कषायोंका क्षय
१. जयघयल मूल पृष्ठ २२७२ | "चूलिका विशेष व्याख्यानम् अथवा उक्तानुक्तम्याख्यानम्, उक्ता
नुक्तसंकीर्णव्याख्यानम् ।" (द. सं० क्षेपक गाथा १-२ की दीका अन्त में) 'सुत्त सूइदत्य पयासणं चूलिया णाप।" (धवल पु० १० पृष्ठ ३६५) "कालविहाणेण सूचिदस्थाणं विवरण चलिया । जाए अत्थ परूबरणाए कदाए पुग्धपरूविदत्यम्मि सिस्साणं णिच्छओ उपज्जदि सा चलिया ति भरिगदं होदि ।" (श्वल पु० ११ पृष्ठ १४०)। "एक्कारस अणिओगद्दारेसु सूद्धदस्थस्स विसेसियूण परूवणा चलिया।" (घ० पु०७ पृष्ठ ५७५) । विशेष व्याख्यान अथवा उक्तामुक्त व्याख्यान चूलिका है । सूत्र सूचित अर्थके प्रकाशित करनेका नाम चलिका है। सूचित अर्थाका विशेष वर्णन करना चूलिका है। जिस अर्थ प्ररूपणाके किये जानेपर पूर्व में परिणत पदार्थके विषय में शिष्यको निश्चय उत्पन्न हो वह चूलिका है।