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क्षपणासार
(गाथा २२७-२२६ जाता था उससे असंख्यातगुणा द्रव्य सयोगके वली अपकर्षित करते हैं । गुणश्रेणिनिक्षेपका आयाम संख्यातगुणा हीन है, क्योंकि छद्मस्थ के परिणामोंसे केवलोके परिणाम विशुद्धतर हैं, ऐसा ११वीं गुणश्रेणिप्ररुपणामें कहा गया है। इसप्रकार आयुकर्मको छोड़कर शेष तीनप्रघातिया कर्मों के प्रदेशों की असंख्यातगुणश्रेणिनिर्जरा करने वाले तथा धर्मतीर्थको फैलानेवाले उत्कृष्टरूपसे कुछकम पूर्वकोटि कालतक बिहार करते हैं । तोर्थङ्करके बली के और अन्य केवलियोंके जघन्यकालका उत्कृष्ट कालप्रमाण आगमसे जान लेना चाहिए । तीर्थङ्करके वली समवशरणविभूतिके साथ बिहार करते हैं ।
पडिसमयं दिव्यतमं जोगी णोकम्मदेहपडिबद्धं ।
समयपबद्धं बंधादि गलिदवसेप्ताउमेत्तठिदी ॥२२७॥६१८॥
अर्थ-सयोगिजिन प्रतिसमय प्रौदारिकशरोररूप नोकर्मसम्बन्धी आहारवर्गणारूप समय प्रबद्धको बांधते हैं जिसकी स्थिति सयोगिजिनसे पूर्व अवस्थामें व्यतीत हुई आयुके बिना शेष बची आयुप्रमाण जानना ।
विशेषार्थ-नोकर्मवर्गणा ग्रहण करना ही आहारमार्गणा है और इसका सद्भाव केबलोभनमारक है, भोलि गोड, मानतिक दल, कर्म और नोकर्म के भेदसे छहप्रकारका आहार है । इन छहप्रकारके आहार में से कर्म व नोकमरूप दोप्रकारका आहार पाया जाता है। सातावेदनीयके समय प्रबद्धको ग्रहण करता है वह कर्म आहार है तथा औदारिकशरीररूप समयप्रबद्धको ग्रहण करता है वह नोकर्म आहार है ।
णवरि समुग्घादगदे पदरे तह लोगपूरणे पदरे ।
णस्थि तिसमये णियमा णोकम्माहारयं तस्थ ॥२२॥६१६॥
अर्थ-इतनी विशेषता है कि केवलीसमुद्घातको प्राप्त केवलोभगवान्में प्रतरके दो, लोकपूरणके एक इन तीनसमयों में नोकर्मका आहार नहीं है अन्य सर्वकाल में नोकर्मका आहार पाया जाता है।
अथानन्तर पश्चिमस्कंधद्वारका कथन करते हैं--
अंतोमुहुत्तमाऊ परिसेसे केवली समुग्धादं ।
दंड कवाट पदरं लोगस्स य पूरणं कुणदी ।।२२६॥६२०॥ १. जयधवल मूल पृष्ठ २२७२ ।