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________________ क्षपणासार गाथा ११३-११४] [१०७ तीन संग्रहकृष्टियोंके नीचे पूर्व कृष्टियोंके असंख्यातवेंभागमात्र अपूर्वकृष्टियां हितीयसमयमें रची जाती हैं। इसीप्रकार संज्वलनमान-माया व लोभकषायके अपने-अपने स्पर्धकों से प्रदेशाग्र अपकर्षित करके अपनी-अपनी संग्रहकृष्टियों के नीचे प्रथमसमयमें रची गई कृष्टियोंके असंख्यात भागप्रमाण अपूर्व कृष्टियोंको द्वितीयसमयमें रचता है । इसप्रकार १२ कृष्टियोंके नीचे द्वितीयसमय में अपूर्वकृष्टियोंकी रचना की जाती है। पालमें की हुई कृष्टियों का प्रमाण अपूर्वकृष्टियोंसे असंख्यातगुणा है । यहां पार्श्वकृष्टियों में मध्यमखण्ड और उभयद्रव्य विशेष है। मध्यमखण्ड और उभय द्रव्यके सम्बन्धमें लब्धिसार. गाथा २८६-८७ देखना चाहिए। 'पुवादिम्हि अपुवा पुवादि अपुव्वपढमगे सेसे । दिज्जदि असंखभागेणू णं अहियं अणंतभागणं ॥११३॥५०४|| वारेक्कारमणंतं पुवादि अपुवमादि सेसं तु । तेवीस ऊंट कूडा दिज्जे दिस्से अणंतभागणं ॥११४॥५०५॥ अर्थ- अपूर्वकृष्टि की अन्तिमकृष्टि से पहले जो पुरातनकृष्टि है उसकी प्रथमकृष्टि में तो असंख्यातवें भाग घटता द्रव्य देता है तथा पूर्वकृष्टिको अन्तिमकृष्टिसे द्वितीय सग्रहकृष्टिके नीचे अपूर्वकृष्टिकी प्रथम कृष्टिमें असंख्यातयांभागमात्र अधिक द्रव्य देता है। एवं अवशिष्ट सर्वकृष्टियोंमें पूर्वकृष्टिसे उत्तरकृष्टि में अमन्तवांभागमात्र घटते हुए द्रव्य देता है । यहां पुरातन (प्रथम) कृष्टियो १२ और अपूर्वप्रथमकृष्टि ११ तथा अवशेष कृष्टियां अनन्त जाननी । दृश्यमानमें लोभकषायकी प्रथमसंग्रहकृष्टिकी नवीन (अपूर्व) जघन्यकृष्टिसे लेकर क्रोधकषायकी तृतीयसंग्रहकष्टि सम्बन्धी पुरातन (पूर्व) अन्तिमकृष्टिपर्यन्त अनन्तभागमात्र घटते हुए क्रमसे द्रव्य जानना चाहिए । विशेषार्थः-लोभकषायको प्रथमसंग्रहकृष्टिके नीचे द्वितीयसमय में निवर्तमान लोभको अपूर्वकृष्टिसम्बन्धी जघन्यकृष्टि में अन्य उपरिमकृष्टियोंकी अपेक्षा बहुत प्रदेशाग्र दिया जाता है अन्यथा कृष्टिगत प्रदेशों में पूर्वानुपूर्वी एक गोपुच्छ विशेषको अवस्थित अनुवृत्ति सम्भव नहीं है । द्वितीयकृष्टि में विशेषहीन अर्थात् अनन्त-भागहीन प्रदेशाग्र दिये जाते हैं । यहां अनन्तोंभागका प्रमाण एकवर्गणा-विशेषके प्रमाण के बराबर है अतः १. क. पा० सुस्त पृष्ठ ८०१ से ८०३ तक सूत्र ६५३ से ६७२ तक । ३० पु० ६ पृष्ठ ३८० ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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