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________________ १०२] [ गाथा १०८ गुणा करनेपर उसकी ( द्वितीय संग्रह कृष्टिकी) द्वितीयकुष्टि होतो है वह प्रथमगुणकार उपर्युक्त अन्तिमस्त्रस्थानगुणकारसे अनन्तगुणा है इसकी अङ्कसन्दृष्टि (१६) है । इसप्रकार बीच-बीच में परस्थानगुगकारको छोड़कर एक-एककूष्टिके प्रति गुणकारका प्रमाण अनन्तगुणा जानना । यहां कृष्टियोंके प्रमाण में से एककम प्रमाण अन्तराल हैं उनमें ११ परस्थानगुणकार और एक जघन्यगुणकार पाया जाता है । अन्तिम प्राप्त संख्याका गुणकार नहीं होता ( सन्दृष्टि में ४२ = ३२७६८) इसप्रकार इन १३को कृष्टियों के प्रमाण में से घटानेपर अवशेष जितना प्रमाण रहा उतनीबार जवन्य गुणकारको अनन्त से गुणा करनेपर जो लब्ध आया उससे क्रोध कषाय की तृतीयसंग्रहकृष्टिकी द्विचरमकूष्टिको गुणा करें तो कोवकषायकी तृतीय संग्रहकुष्टिसम्बन्धी चरमकृष्टि होती है । यहाँ अङ्क ४८ कृष्टियों में से १३ घटाने से (४८ - १३) ३५ शेष रहे बतः ३५ बार अनन्तके प्रमाण (२) को परस्पर में गुणा करनेपर १६ गुणा बादाल ( १६ X बादाल ) लब्ध आया | यहांसे स्वस्थानगुणकारको छोड़कर पुनः लौटकर लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिकी अन्तिम वर्मणाको ( कृष्टिको ) जिस गुणकारसे गुणा करने से द्वितीय संग्रह कृष्टिकी प्रथमवर्गणा (कृष्टि) होती है वह परस्थानगुणकार पूर्वोक्त भन्तिमस्वस्थान गुणकार से अनन्तगुणा है और इसको सन्दृष्टि ३२ गुणा बादाल ( ३२Xबादाल ) है तथा लोभकषायकी द्वितीय संग्रहकृष्टिको अन्तिम कृष्टिको जिस गुणकारसे गुणाकरने पर लोभकषायकी तृतीयसंग्रहकृष्टिसम्बन्धी प्रथमकुष्टि होती है वह द्वितीयपरस्थानगुणकार उपर्युक्त प्रथमपरस्थान गुणकार से अनन्तगुणा है एवं लोभकषायकी तृतीयसंग्रहकूष्टिसम्बन्धी arunfest जिस गुणकारसे गुणा करवेपर मायाकषायको प्रथम संग्रहकृष्टि सम्बन्धी प्रथम अन्तरकृष्टि होती है वह तृतीयपरस्थानगुणकार पूर्वोक्त द्वितीयपरस्थान गुणकार से अनन्तगुणा है । इसीप्रकार ११ परस्थानगुणकारोंको क्रमसे मनन्तके द्वारा गुणाकरनेपर कोषकषायकी द्वितीय संग्रहकृष्टिसम्बन्धी अन्तिमकुष्टिको जिस गुणकारसे गुणा करने से कोषकषायकी तृतीयसंग्रह कृष्टिसम्बन्धी प्रथम कृष्टि होती है उस गुणकार प्रमाण लब्धराशि प्राप्त होती है । क्षपणासार कृष्टि अन्तरों एवं संग्रह कृष्टिअन्तरोंका अल्पबहुत्व इसप्रकार है - 'लोभकषायकी प्रथम संग्रहकुष्टि में जघन्यकृति अन्दर अर्थात् जिस गुणकारसे गुणित जघन्यकुष्टि अपनी द्वितीयकुष्टिका प्रमाण प्राप्त करती है वह गुणकार सबसे १. क० पा० सुत्त पृष्ठ ७६६ से प्रारम्भ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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