SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा १५ ] [ २ असंख्यातगुणे हैं, एक स्पर्धकसम्बन्धीवर्गणा अनन्तगुणी हैं, उससे अनन्तगुणी कोधकी अपूर्वस्पर्धक वर्गणाएं है इससे मानादि कषायों में विशेषअधिक क्रमसे हैं, लोभके पूर्वस्पर्धक और उनकी वर्गणाओंसे कोषपर्यन्त प्राठपद अनन्तगुणित क्रमसे हैं । क्षपणासार विशेषार्थ :- अश्वकर्णकरण के प्रथम अनुभागकाण्डकके नष्ट होनेपर संज्वलनकषायों के शेष अनुभागसम्बन्त्र अल्पबहुत्व इसप्रकार है - क्रोधकषायके पूर्वस्पर्धक सबसे स्तोक हैं उससे मानकषायके अपूर्वस्पर्धक विशेषअधिक हैं, उससे मायाकषायके पूर्वस्पर्धक विशेषअधिक और इससे लोभकषायसम्बन्धी अपूर्वस्पर्धक विशेषअधिक हैं । इनसे भी एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के स्पर्धक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि अपूर्वस्पर्धक एक प्रदेश गुणहानिस्थानान्तर के स्पर्धकोंके असख्यातवें भागप्रमाण हैं । एक स्पर्धककी वाएं अनन्तगुणी है, क्योंकि पूर्व या अपूर्वस्पर्धकों में एकरपर्धकसम्बन्धी वर्गणाए अभय अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तभाग हैं. सर्व स्पर्धकों में वर्गणाओंका प्रमाण सदृश है । संज्वलन की अपूर्वस्पर्धक वर्गणाएं अनन्तगुणी हैं, क्योंकि संज्वलनको धके अपूर्वस्पर्धक अनन्त है तथा तत्सम्बन्धी वर्गणाएं एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के स्पर्धकों से असंख्यात भागगुणी हैं। एकस्पर्धकसम्बन्धी वर्गणानों को एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के स्पर्धको के असंख्यातवें भागप्रमाण स्पर्धकों से गुणा करनेपर संज्वलन कोष के सर्व अपूर्वस्पर्धकों की संख्या प्राप्त हो जाती है जो एकस्पर्धाकसम्बन्धी वगंणाओंसे अनन्तगुणो हैं, उससे संज्वलनमानके अपूर्वस्पर्धकसम्बन्धी वर्गणाएं विशेषअधिक हैं, उससे संज्वलनमायाके अपूर्वस्पर्धकों की वर्गणाएं विशेषअधिक हैं तथा इससे संज्वलन लोभकषाय के अपूर्वस्पर्धकों की वर्गणाएं विशेषअधिक हैं, क्योंकि अपूर्वस्पर्धक विशेषअधिक क्रमसे हैं । लोकषाय के पूर्वस्पर्धक अनंतगुणे हैं, क्योंकि पूर्ववर्षकों के अनन्तभागप्रमाण अपूर्वस्पर्धक हैं, अपूर्वस्पर्धक एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर के असंख्यातवें भाग: हैं । अपूर्णस्पर्धकों को एकस्पर्धक वर्गणासे गुणा करनेपर अपूर्वस्पर्धककी वर्गणाका प्रमाण प्राप्त होता है । पूर्वस्पर्धकोंके अनन्तभागप्रमाण पूर्वस्पर्धकसम्बन्धी नानागुणहानिशलाकासे एकस्पर्धककी वर्गणा अनन्तगुणीहीन है इसलिए अपूर्वस्पर्धक वर्गणाओंसे पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे हैं यह सिद्ध हो जाता है | संज्वलनलोभके पूर्वस्पर्धकों की वर्गणा अनन्तगुणी हैं, यहां गुणकार एकस्पर्श क सम्बन्धी वर्गणाशलाका है । मायाकषाय के पूर्व स्पर्धक लोभकषाय के पूर्वस्पर्धकों से अमन्तगुणे हैं, क्योंकि अनुभागखण्ड के नष्ट हो जावेपर लोभादि संज्वलनकषायों के पूर्वस्पर्शक
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy