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________________ गाथा ७६ ] क्षपणासार [ ७५ चित्र नं. २ :- उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारसे खण्डितकर एकफालि नीचे पृथक् ग्रहण की गई है। उत्कर्षण-अपकर्षणभागहार अङ्कमन्दृष्टि में (५) है। ---------- डेढगुणहानि ------- - एकफालि बहुफालिप्रमाण पूर्वस्पर्धकका शेषद्रव्य - - - - - - -- - अपकषित द्रव्य पृथक् ग्रहण किया एकफालिप्रमाण क्षेत्र समस्त अपकषितद्रव्य है। अपूर्वस्पर्धकोंके लिए इसद्रव्यका अपकर्षण किया गया है । एकगुणहानिका भागहार है । पृथक ग्रहण की गई फालिका मायाम डेढ़गुणहानि है अतः असंख्यातगुणे अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारको भी डेढ़गुणा करना चाहिए । इसलिए डेढ़गुण हानिआयामके इतने खण्ड करने चाहिए । देखो निम्न चित्र नं. ३ । अङ्कसष्टिमें असंख्यातगुणा अपकर्षणउत्कर्षण भागहार - ८ । चित्र नं. ३ एकफालि -----------डेढ़गुणहानि-------- इनमें से एकखण्डका आयाम अपूर्वस्पर्धकके आयामके बराबर है । इन खण्डोंमें से एककम उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारप्रमाण खण्डोंको ग्रहणकर पूर्वखण्डोंके क्षेत्रके नीचे स्थापित करनेपर अपूर्वस्पर्धकवर्गणा पूर्वस्पर्धकवर्गणाओंके सदृश ( बराबर ) प्रमाण दिखाई देती है । देखो चित्र नं. ४ :
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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