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________________ क्षपणासार ७४ ] [ মাখা ও प्रमाण प्राप्त होता है अतः अपकर्षितद्रव्य पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणाके असंख्यात वभाग होनेसे यह सिद्ध हो जाता है कि पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणामें पूर्व अवस्थित द्रव्य, निक्षिप्तद्रध्यसे असंख्यातगुणा है । इसीको क्षेत्र विन्यासके द्वारा स्पष्ट किया जाता है-- समस्त द्रव्यको पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणा प्रमाणरूप करनेपर डेढगुणहानिप्रमाण आदिवर्गणा होती है, उसका क्षेत्रविन्यास निम्न प्रकार है जिसका विषकम्भ आदिवर्गणा प्रमाण है और आयाम डेढगुणहानि प्रमाण है । - - - - - - - - डेढगुणहानि - - - - - - -------IDEALE ----- - --------.- एकगुणहानि - - - - - - - - - - - - - -अर्धगुणहानि--- इस क्षेत्रके विषकम्भकी उत्कर्षण-अपकर्षणभागहारप्रमाण फालियां करनी चाहिए। उनमें से एकफालिको ग्रहणकर पृथक् स्थापित करना चाहिए । इस संबंध में चित्र नं० २ देखना चाहिए। १. जयधवल मूल पृष्ठ २०२३ । जयधवल मूल पृष्ठ २०३४ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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