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क्षपणासार
[ गाथा ५६-६० संख्यातवांभागमात्र होता है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्त राय इन तीनघातियाकौका स्थितिबन्ध संख्यातवाना न होता था अत: स्थितिमा पञ्चाकाल पूर्ण होनेपर प्रथमस्थितिबन्धाप सरणके द्वारा घातियाकर्मोंका स्थिति बन्ध संख्यातबहुभाग घटकर संख्यात गुणा हीन अर्थात् सस्थातवेंभाग हो जाता है। इसी प्रकार प्रथमस्थितिकाण्डककाल पूर्ण होनेपर उसी प्रथमस्थितिबन्धापस रणके द्वारा वेदनीय, नाम और गोत्र इन तीन अघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यात बहुभाग घटकर असंख्यात गुणाहीन अर्थात असंख्यातवेंभाग हो जाता है । अघानियाकोका स्थितिबन्ध असख्यातवर्षप्रमाण होता था इसलिए उनमें असंख्यात बहुभागका स्थितिबन्यापसरण होता है । यहां 'प्रथमस्थिति. काण्डक पूर्ण होनेपर' ये शब्द मात्र प्रथम स्थिति काण्डककाल अन्तर्मुहुर्त है इस बातके धोतक हैं; कारणके द्योतक नहीं, क्योंकि स्थितिकाण्डकद्वारा स्थितिबन्ध नहीं घटता । यदि कहा जाय कि स्थिति काण्डकसे स्थिति सत्त्व और बन्ध दोनोंका घात होता है तो स्थितिबन्धापसरणका कोई कार्य ही नहीं रहेगा ।
'ठिदिबंधपुछत्तगदे संखेजदिमं गदं सदद्धाए ।
एस्थ अघादितियाणं ठिदिवंधो संखवस्सं तु ।।१६।।४५०।।
अर्थः-पृथक्त्व स्थितिबन्धापसरणोंके हो जानेपर सात नोकषायके क्षपणाकालका संख्यातवांभाग व्यतीत हो जाता है तब तीन प्रघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातवर्षवाला हो जाता है।
विशेषार्थ:--पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा इनसात नोकषायोंके क्षपणाकालका संख्याताभाग व्यतीत हो जाने पर तब नाम व गोत्र, वेदनीय इन तीनअघातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध पृथक्त्वबन्धापसरणोंके द्वारा असंख्यातवर्षसे घटकर संख्यातहजारवर्षप्रमाण हो जाता है। इन तीन अघातियाकर्मोंका स्थितिबन्ध प्रत्येक स्थितिबन्धापसरणके द्वारा असंख्यातवर्ष घटता है । इसप्रकार सर्वकर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातवर्ष होने लगता है ।
'ठिदिखंडपुधत्तगदे संखाभागा गदा तदद्धाए ।
घादितियाणं तत्थ य ठिदिसतं संखवस्सं तु॥६०॥४५१॥ १. क. पा० सुत्त पृष्ठ ७५४ सूत्र २३७ । घ० पु० ६ पृष्ठ ३६१ । अयधबल मूल पृष्ठ १६६६ । २. क. पा. सुत्त पृष्ठ ७५४ सूत्र २३८ । ६ पु. ६ पृष्ठ ३६१-६२ । ज. ध. मूल पृष्ठ १६६६-७० ।