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गाथा ५८]
सपणासार
काण्डकघात के द्वारा स्थितिसत्कर्म के बहुभागका घात होते-होते एकभाग शेष रह जाता है । मोहनोयकर्मका स्थितिसत्व संख्यातवर्षप्रमाण है। अतः प्रथमस्थिति काण्डकघातको अन्तिमफालिका पतन होने पर मोहनोयकर्मसम्बन्धी स्थितिसत्वके संख्यातबहुभाग घात हो जाने पर शेष स्थिति पत्र संख्यातगुणाहोन अर्थात् संरूपातवेंभाग रह जाता है। शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्त राय, वेदनीय. नाम और गोत्र इनछह कर्मों के स्थितिसत्कर्म का असंख्यात बहुभाग उसो (प्रथम) स्थितिकाण्डकघातके द्वारा घाता जानेसे शेष स्थितिसत्त्व असंख्यातवें भागहीन अर्थात् असंख्यातवेंभाग रह जाता है । इनछह कर्मों का स्थितिसत्त्व, मोहनोयकर्मके स्थितिसत्तसे असंख्यातगुणा होनेके कारण (गाथा ५६) असंख्यातवर्षप्रमाण है । अतः स्थितिसत्वका बहुभाग अर्थात् असंख्यातबहुभागका घात प्रय मस्पितिकाण्डकको अन्तिमफालिके पतनके समय हो जाता है ।
'सत्तरहं पढ मद्विदिखंडे पुण्णेति घादिठिदिवंधो।
संखेजगुणविहीणं अवादितियाणं अवगुणहीणं ॥५८॥४४६।।
अर्थः-सातकर्मोका प्रथमस्थितिकाण्डक पूर्ण होने पर घातियाकर्मों का स्थितिबन्ध संख्यातगुणाहोन और तोन अघातियाकोका असंख्यातगुणाहोन हो जाता है।
विशेषार्थः-सात (पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) नोकषायको क्षय करने के लिए अन्यस्थितिकाण्डक, अन्धस्थितिबन्धापसरण और अन्य ही अनुभागकाण्डकका प्रारम्भ होता है। स्थितिकाण्डकके द्वारा स्थितिसत्त्वका घात होता है, स्थितिबन्धापसरण से स्थितिबन्ध घटता है और अनुभागकाण्डकके द्वारा अप्रशस्त (अशुभ-पाप) प्रकृतियों के अनुभागका घात होता है। हजारों अनुभागकाण्डकोंके हो जानेपर एक स्थितिकाण्डक पूर्ण होता है और अन्तिम अनुभागकाण्डकघात व स्थितिकाण्डक युगपत् समाप्त होते हैं । एक स्थितिकाण्डकका काल और स्थितिबन्धापसरणका काल परस्पर तुल्य है । सात नोकषायोंके स्थितिसत्त्वका घात करने के लिए जो प्रथमस्थितिकाण्डक प्रारम्भ हुआ था उसके पूर्ण होने पर अर्थात् प्रथमस्थितिकाण्डककाल समास होनेपर प्रथमस्थितिबन्धापसरणद्वारा स्थितिबन्धका बहुभाग घट जाता है अर्थात् प्रथमस्थितिबन्धापसरण पूर्ण होने पर जो स्थितिबन्ध होता है वह पूर्वस्थिति बन्धका
१. क. पा० सुत्त पृष्ठ ७५४ सूत्र २३५-३६ । धवल पु० ६ पृष्ठ ३६१ १ ज० ५० मूल पृष्ठ १६६६ ।